Tuesday, January 28, 2014

सरदार वल्लभ भाई पटेल

आजादी के बाद भी सैकड़ों रियासतों के रूप में बंटे भारत को अखंड भारत बनाने में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अपने बहादुरी भरे कार्यों और दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर लौह पुरुष का दर्जा हासिल करने वाले पटेल की स्वतंत्रता आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका रही।

गुजरात के नाडियाड़ में 31 अक्टूबर 1875 को जन्मे पटेल जहां एक सफल वकील थे, वहीं वह जमीन से जुड़े नेता और महान राष्ट्रवादी भी थे। शुरुआत में उनके मन पर गांधीजी के दर्शन का गहरा प्रभाव था और आजादी की लड़ाई में वह कई बार जेल गए।

ब्रिटिश राज की नीतियों के विरोध में उन्होंने अहिंसक और नागरिक अवज्ञा आंदोलन के जरिए खेड़ा बोरसाद और बारदोली के किसानों को एकत्र किया। अपने इस काम की वजह से वह गुजरात के महत्वपूर्ण जननेता बने। जन कल्याण और आजादी के लिए चलाए जाने वाले आंदोलनों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाओं के चलते उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में महत्वपूर्ण स्थान मिला।

इतिहासवेत्ता मालती मलिक के अनुसार पटेल को ‘सरदार’ नाम गुजरात के बारदोली तालुका के लोगों ने दिया और इस तरह वह सरदार वल्लभ भाई पटेल कहलाने लगे।

पंद्रह अगस्त 1947 को भारत जब आजाद हुआ तो पटेल के ऊपर 565 अर्ध स्वायत्त रियासतों और ब्रिटिश युग के उपनिवेशीय प्रांतों को भारत में मिलाने की जिम्मेदारी आ गई। पटेल ने अपने कूटनीतिक और रणनीतिक चातुर्य से इस कर्तव्य को बखूबी निभाया और जरूरत पड़ने पर बल प्रयोग से भी नहीं चूके।

हैदराबाद के निजाम ने जब एक भारत की अवधारणा को नहीं माना तो पटेल ने सेना उतारकर उसका घमंड चूर कर दिया। ‘ऑपरेशन पोलो’ नाम का यह सैन्य अभियान पूरी तरह सफल रहा और इस तरह हैदराबाद भारत का हिस्सा बन गया। जूनागढ़ के लिए भी उन्होंने यही रास्ता अख्तियार किया।

लक्षद्वीप समूह को भारत के साथ मिलाने में भी पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस क्षेत्र के लोग देश की मुख्यधारा से कटे हुए थे और उन्हें भारत की आजादी की जानकारी 15 अगस्त 1947 के बाद मिली।

हालांकि यह क्षेत्र पाकिस्तान के नजदीक नहीं था लेकिन पटेल को लगता था कि इस पर पाकिस्तान दावा कर सकता है। इसलिए ऐसी किसी भी स्थिति को टालने के लिए पटेल ने लक्षद्वीप में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए भारतीय नौसेना का एक जहाज भेजा। इसके कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तानी नौसेना के जहाज लक्षद्वीप के पास मंडराते देखे गए लेकिन वहां भारत का झंडा लहराते देख वे वापस कराची चले गए।

राष्ट्र के एकीकरण में महान योगदान देने वाले भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री का पंद्रह दिसंबर 1950 को निधन हो गया। 

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