क्या हो गया हे इस इंसान को
जिसे देखो वही पराया हे
हज़ारो की भीड़ में भी
बस अपनों का सिर्फ साया हे
उजाली राहो में अन्धेरा छाया हे
कोई ईश्वर के प्रेम में मग्न हे
तो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कोई खुद के ही गम में गम हे
कोई मोहब्बत कि भूख से मरा हे
तो ,,,,,,,
कोई ,, लगता हे पीकर आया हे
जहाँ देखो वही बस
सिर्फ ख़ामोशी का साया हे
जिसे देखो वही पराया हे
ना किसी से लेना ,,, ना देना
ना कोई अपना ,,, ना पराया
ना बैठक , बाते ,,, ना चोपाल
पता नहीं किस दुश्मनी का ये साया हे
पता नहीं किस मालिक की ये माया हे
जिसे देखो वही पराया हे
हर तरफ बस ख़ामोशी का साया हे
जब टूटती हे ख़ामोशी तो ,,,,
फूटता हे लावा ,,,,,,
इंसान के कंठ से ,,,,
भड़कते हे दंगे ,,,
दंगो से घिरा यह इंसान
बस ,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सिर्फ पुतला बन कर रह गया हे
ना हिन्दू ,,,,,ना मुसलमान
ना सिख ,,, ना ईसाई
विश्व विरीह कातर हे
कत्ल होते गुलाब ,,,,,
एवं,,,,,,,,,,,
नई सदी की चीख का साया हे
जहाँ देखो वही इंसान का साया हे
हर तरफ ख़ामोशी का साया हे
सच्ची सभ्यता एवं संस्कृति के चेहरे पर ,,,
पुती कालिख का यह साया हे
दंगो में फंसा यह देश ,,,
सिर्फ,,,,,,,
दहशत भरी हिमाकत क्यों हे
बँट गए धर्म – मजहब
बँट गए समाज – समुदाय
बस ,,, रह गई हे तो ,,,
बनके अखबार कि सुर्खिया
क्या हो गया हे इंसान को
जिसे देखो वही पराया हे
हर तरफ ख़ामोशी का साया हे
हर तरफ ख़ामोशी का साया हे
आर . बी . आँजना
जिसे देखो वही पराया हे
हज़ारो की भीड़ में भी
बस अपनों का सिर्फ साया हे
उजाली राहो में अन्धेरा छाया हे
कोई ईश्वर के प्रेम में मग्न हे
तो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कोई खुद के ही गम में गम हे
कोई मोहब्बत कि भूख से मरा हे
तो ,,,,,,,
कोई ,, लगता हे पीकर आया हे
जहाँ देखो वही बस
सिर्फ ख़ामोशी का साया हे
जिसे देखो वही पराया हे
ना किसी से लेना ,,, ना देना
ना कोई अपना ,,, ना पराया
ना बैठक , बाते ,,, ना चोपाल
पता नहीं किस दुश्मनी का ये साया हे
पता नहीं किस मालिक की ये माया हे
जिसे देखो वही पराया हे
हर तरफ बस ख़ामोशी का साया हे
जब टूटती हे ख़ामोशी तो ,,,,
फूटता हे लावा ,,,,,,
इंसान के कंठ से ,,,,
भड़कते हे दंगे ,,,
दंगो से घिरा यह इंसान
बस ,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सिर्फ पुतला बन कर रह गया हे
ना हिन्दू ,,,,,ना मुसलमान
ना सिख ,,, ना ईसाई
विश्व विरीह कातर हे
कत्ल होते गुलाब ,,,,,
एवं,,,,,,,,,,,
नई सदी की चीख का साया हे
जहाँ देखो वही इंसान का साया हे
हर तरफ ख़ामोशी का साया हे
सच्ची सभ्यता एवं संस्कृति के चेहरे पर ,,,
पुती कालिख का यह साया हे
दंगो में फंसा यह देश ,,,
सिर्फ,,,,,,,
दहशत भरी हिमाकत क्यों हे
बँट गए धर्म – मजहब
बँट गए समाज – समुदाय
बस ,,, रह गई हे तो ,,,
बनके अखबार कि सुर्खिया
क्या हो गया हे इंसान को
जिसे देखो वही पराया हे
हर तरफ ख़ामोशी का साया हे
हर तरफ ख़ामोशी का साया हे
आर . बी . आँजना
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welcome to my world . thanks to read , like , comments and your valuable support . please comments if you have any suggestion. kindly give your feedback and comment your ideas about you wants to know .
thanks.