आत्मा के सात शरीर होते हैं और जिन जिन परमाणुओं से वे सातों शरीर निर्मित होते हैं,
उन्ही-उन्ही परमाणुओं से सात लोकों का भी निर्माण हुआ है जो निम्न लिखित हैं-
स्थूल या भौतिक या पार्थिव
वासना या प्रेत
सूक्ष्म या प्राण
मनोमय
आत्म
ब्रह्म
निर्वाण
इन सातों लोकों से मनुष्य के सातों शरीरों का सम्बन्ध होता है जिनके प्रवेश द्वारा मानव शरीर में सात चक्र के रूप में विद्यमान होते हैं। ये चक्र प्रवेश के द्वार होने के साथ साथ शक्ति के केंद्र और पदार्थों के केंद्र भी होते हैं।
पहला
भौतिक शरीर और भौतिक जगत* का सम्बन्ध पृथ्वी तत्त्व से होता है जिसका आधार है--मूलाधार चक्र। शरीर में इसकी स्थिति मेरुदण्ड के निचले सिरे पर है।
दूसरा
वासना शरीर और वासना लोक(प्रेत शरीर)* का सम्बन्ध शरीरस्थित लिंगमूल के निकट स्वाधिष्ठान चक्र से होता है। इस चक्र में जल तत्व है।
तीसरा
सूक्ष्म शरीर और सूक्ष्म जगत* का सम्बन्ध नाभि स्थित मणिपूरक चक्र से है । इसमें अग्नि तत्व है।
चौथा
मनोमय शरीर और मनोमय जगत* का शरीरस्थित ह्रदय सेसंबंध है।यहाँ अनाहत चक्र होता है और इसका वायु तत्व से सम्बन्ध है।
पांचवां
शरीर और पांचवां लोक है-आत्मलोक*। इसका सम्बन्ध आकाश तत्व से होता है। इसका शरीर में कंठ स्थित विशुद्ध चक्र से सम्बन्ध है।
छठा
ल शरीर ब्रह्म शरीर है और छठा जगत है ब्रह्म जगत*। यहाँ तक आते आते सारे तत्व और पदार्थों का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। इस शरीर और इस लोक का सम्बन्ध है आज्ञाचक्र से। यह चक्र दोनों भौंह के मध्य है और इसीको तीसरा नेत्र भी कहते हैं।
सातवां
शरीर है निर्वाण शरीर और सातवां लोक है निर्वाण जगत* । इसका स्थान है सहस्रार स्थित ब्रह्मरंध्र।इसीमें एक विशेष प्रकार का द्रव विद्यमान जिसका आधुनिक विज्ञान आजतक पता नहीं लगा सका है। यहीं पर परम तत्व शिव के स्वरुप में विद्यमान है
No comments:
Post a Comment
welcome to my world . thanks to read , like , comments and your valuable support . please comments if you have any suggestion. kindly give your feedback and comment your ideas about you wants to know .
thanks.