शुरू किया था सफ़र जिंदगी का,,,,,,,,
कई अरमानो के साथ ,,,,
चलता गया मै ,,
दिल में लिए इच्छा ....
कई जज्बातों के साथ ,,,,
आती गई ठोकरे में सामना करता गया,,
करता गया पार कई मुश्किले,,,
इरादा ठोस था ,,
आत्मा मेरे साथ थी ,,,
चलता गया आगे ,,,
पीछे मुड़ के देखा नहीं,,,,
तो ,,साया नज़र आया नहीं,,
कशमकश मची थी ,,
जिंदगी के हर पहलु के साथ ,,,
हर कोई उतावला था,,
अपनी मंजिल पाने को,,,
पर चलना तो खुद को था ,,,
उसमे हमसफ़र बहुत कम थे,,,
क्योकि चलना खुद को था ,,,
मंजिले अपनी जगह थी ,,,
रास्ते अपनी जगह थे,,,
सफ़र काफी लंबा था,,,
पर,,,,,,
मंजिल का साया सुन्दर था,,,
चलता गया मै,,,,,,
कदम कभी गिने नहीं,,,
चलता गया बस ,,इस विस्वास से की,,,
किसी जनाजे का हिस्सा जरुर हु,,,
हर रह आसान हुई ,,,
भीड़ का साया हटा ,,,
चलते कदमो ने मंजिल को पाया ,,,
मंजिल को पहुच के पीछे देखा ,,,
तो,,,,कोई नहीं था,,,
बस,....
कुछ अंतहीन मार्ग ,,,,,
सुनसान रहे .....
बिखरी हुई घास की तन्हाई,,,,
एवं.....
सूखे पेड़ो का साया था.......
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