Thursday, May 21, 2020

         दुनिया बदल गई 



किस कदर बदल गई ये दुनिया 
एक दिन ठहरा मेहमान बुरा लगता हे 

शराब की बोतलों से सजा घर अच्छा लगता हे 
गंगाजल की दो बून्द का होना ना मुमकिन लगता हे 

विदेशी कुत्ते पालना अमीरों का शोक बन गया हे 
जिसके मल  मूत्र से ओषधियाँ बनती हे 
उस गो माता को रोटी का टुकड़ा देना अभिशाप लगता हे 

दुआ सलाम , भाई राम राम बोले वो इंसान गंवार लगता हे 
हाय, हेलो ,गुड मॉर्निंग सर बोले वो बन्दा समझदार लगता हे 

कौन  ख्याल रखता हे भाई- बहन ,, साधु- संतो का 
आजकल तो बूढ़े माँ बाप का फरमान भी बुरा लगता हे 
     
                                                   आर. बी. आँजणा 
                                                    09413885566 
लटका   रहने  दो ,, ,,,मुझे   डंडियों   पर 
ढक  के रखा हु तुम्हारे घर की तिजोरिया 
घर की  इज्जत ढके हुए ,,,,,,एक पर्दा हु 
कोशिश  करोगे   तो ,,, हट  जाऊंगा 
पर ,,,,,
तुम साफ़ नजर  आओगे  दुनिया  को 
ये छुपाये राज पता चल जायेंगे दुनिया को 
                         "आर बी आँजणा"
मेरी डायरी का एक पन्ना 
मेरी लक्ष्मी श्री बिटिया जी के नाम 

Wednesday, May 20, 2020

The 7 Habits of Highly Effective People in Hindi


The 7 Habits of Highly Effective People, या अतिप्रभावकारी लोगों की 7 आदतें, Stephen R. Covey द्वारा लिखी गयी ये किताब आपने ज़रूर देखी, पढ़ी, या सुनी होगी. आज  मैं आपको इसी best seller book का सार Hindi में share कर रहा हूँ. यह पढकर यदि आपको लगता है कि वाकई करोड़ों लोगों की तरह आप भी इससे लाभान्वित हो सकते हैं तो बिना किसी झिझक के इस book को ज़रूर खरीदें.

7 Habits जो बना सकतीं हैं आपको  Successful

आपकी ज़िन्दगी बस यूँ ही नहीं घट जाती. चाहे आप जानते हों या नहीं , ये आपही के द्वारा डिजाईन की जाती है. आखिरकार आप ही अपने विकल्प चुनते हैं. आप खुशियाँ चुनते हैं . आप दुःख चुनते हैं.आप निश्चितता चुनते हैं. आप अपनी अनिश्चितता चुनते हैं.आप अपनी सफलता चुनते हैं. आप अपनी असफलता चुनते हैं.आप साहस चुनते हैं.आप डर चुनते हैं.इतना याद रखिये कि हर एक क्षण, हर एक परिस्थिति आपको एक नया विकल्प देती है.और ऐसे में आपके पास हमेशा ये opportunity होती है कि आप चीजों को अलग तेरीके से करें और अपने लिए और positive result produce  करें.
Habit 1 : Be Proactive / प्रोएक्टिव बनिए
Proactive  होने का मतलब है कि अपनी life के लिए खुद ज़िम्मेदार बनना. आप हर चीज केलिए अपने parents  या  grandparents  को नही blame कर सकते . Proactive  लोग इस बात को समझते हैं कि वो “response-able” हैं . वो अपने आचरण के लिए जेनेटिक्स , परिस्थितियों, या परिवेष को दोष नहीं देते हैं.उन्हें पता होताहै कि वो अपना व्यवहार खुद चुनते हैं. वहीँ दूसरी तरफ जो लोग reactive  होते हैं वो ज्यादातर अपने भौतिक वातावरण से प्रभावितहोते हैं. वो अपने behaviour  के लिए बाहरी चीजों को दोष देते हैं. अगर मौसम अच्छा है, तोउन्हें अच्छा लगता है.और अगर नहीं है तो यह उनके attitude और  performance  को प्रभावित करता है, और वो मौसम को दोष देते हैं. सभी बाहरी ताकतें एक उत्तेजना  की तरह काम करती हैं , जिन पर हम react करते हैं. इसी उत्तेजना और आप उसपर जो प्रतिक्रिया करते हैं के बीच में आपकी सबसे बड़ी ताकत छिपी होती है- और वो होती है इस बात कि स्वतंत्रता कि आप  अपनी प्रतिक्रिया का चयन स्वयम कर सकते हैं. एक बेहद महत्त्वपूर्ण चीज होती है कि आप इस बात का चुनाव कर सकते हैं कि आप क्या बोलते हैं.आप जो भाषा प्रयोग करते हैं वो इस बात को indicate  करती है कि आप खुद को कैसे देखते हैं.एक proactive व्यक्ति proactive भाषा का प्रयोग करता है.–मैं कर सकता हूँ, मैं करूँगा, etc. एक reactive  व्यक्ति reactive  भाषा का प्रयोग करता है- मैं नहीं कर सकता, काश अगर ऐसा होता , etc. Reactive  लोग  सोचते हैं कि वो जो कहते और करते हैं उसके लिए वो खुद जिम्मेदार नहीं हैं-उनके पास कोई विकल्प नहीं है.
ऐसी परिस्थितियां जिन पर बिलकुल भी नहीं या थोड़ा-बहुत control किया जा सकता है , उसपर react या चिंता करने के बजाये proactive  लोग अपना time  और  energy  ऐसी चीजों में लगाते हैं जिनको वो  control  कर सकें. हमारे सामने जो भी समस्याएं ,चुनतिया या अवसर होते हैं उन्हें हम दो क्षेत्रों में बाँट सकते ह

Habit 2: Begin with the End in Mind  अंत को ध्यान में रख कर शुरुआत करें. 
तो , आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं? शायद यह सवाल थोड़ा अटपटा लगे,लेकिन आप इसके बारे में एक क्षण के लिए सोचिये. क्या आप अभी वो हैं जो आप बनना चाहते थे, जिसका सपना आपने देखा था, क्या आप वो कर रहे हैं जो आप हमेशा से करना चाहते थे. इमानदारी से सोचिये. कई बार ऐसा होता है कि लोग खुद को ऐसी जीत हांसिल करते हुए देखते हैं जो दरअसल खोखली होती हैं–ऐसी सफलता, जिसके बदले में उससे कहीं बड़ी चीजों को  गवाना पड़ा. यदि आपकी सीढ़ी सही दीवा पर नहीं लगी है तो आप जो भी कदम उठाते हैं वो आपको गलत जगह पर लेकर जाता है.

Habit 2 
आपके imagination या  कल्पना  पर आधारित है– imagination , यानि आपकी वो क्षमता जो आपको अपने दिमाग में उन चीजों को दिखा सके जो आप अभी अपनी आँखों से नहीं देख सकते. यह इस सिधांत पर आधारित है कि हर एक चीज का निर्माण दो बार होता है. पहला mental creation, और दूसरा physical creation. जिस  तरह blue-print तैयार होने केबाद मकान बनता है , उसी प्रकार mental  creation  होने के बाद ही physical creation होती है.अगर आप खुद  visualize  नहीं करते हैं कि आप क्या हैं और क्या बनना चाहते हैं तो आप, आपकी life कैसी होगी इस बात का फैसला औरों पर और परिस्थितियों पर छोड़ देते हैं. Habit 2  इस बारे में है कि आप किस तरह से अपनी विशेषता को पहचानते हैं,और फिर अपनी personal, moral और  ethical  guidelines के अन्दर खुद को खुश रख सकते और पूर्ण कर सकते हैं.अंत को ध्यान में रख कर आरम्भ करने का अर्थ है, हर दिन ,काम या project  की शुरआत एक clear vision  के साथ करना कि हमारी क्या दिशा और क्या मंजिल होनी चाहिए, और फिर proactively  उस काम को पूर्ण करने में लग जाना.
Habit 2  को practice मेंलाने का सबसे अच्छा तरीका है कि अपना खुद का एक Personal Mission Statement बनाना. इसका फोकस इस बात पर होगा कि आप क्या बनना चाहते हैं और क्या करना चाहते हैं.ये success के लिए की गयी आपकी planning है.ये इस बात की पुष्टिकरता है कि आप कौन हैं,आपके goals को focus  में रखता है, और आपके ideas  को इस दुनिया में लाता है. आपका Mission Statement आपको अपनी ज़िन्दगी का leader बनाता है. आप अपना भाग्य खुद बनाते हैं, और जो सपने आपने देखे हैं उन्हें साकार करते हैं.
Habit 3 : Put First Things First प्राथमिक चीजों को वरीयता दें
एक balanced life  जीने के लिए, आपको इस बात को समझना होगा कि आप इस ज़िन्दगीमें हर एक चीज नहीं कर सकते. खुद को अपनी क्षमता से अधिक कामो में व्यस्त करने की ज़रुरत नहीं है. जब ज़रूरी हो तो “ना” कहने में मत हिचकिये, और फिर अपनी important priorities पर focus  कीजिये.
Habit 1 
कहतीहै कि , ” आप in charge हैं .आप creator हैं”. Proactive होना आपकी अपनी choice है. Habit 2 पहले दिमाग में चीजों को visualize  करने के बारे में है. अंत को ध्यान में रख कर शुरआत करना vision से सम्बंधित है. Habit 3  दूसरी creation , यानि  physical creation  के बारे में है. इस habit में Habit 1 और Habit 2  का समागम होता है. और यह हर समय हर क्षण होता है. यह Time Management  से related कई प्रश्नों को  deal  करता 
Habit 4: Think Win-Win  हमेशा जीत के बारे में सोचें
Think Win-Win अच्छा होने के बारे में नहीं है, ना ही यह कोईshort-cut है. यहcharacter पर आधारित एक कोड है जो आपको बाकी लोगों सेinteract और सहयोग करने के लिए है.
हममे से ज्यादातर लोग अपना मुल्यांकन दूसरों सेcomparison और  competition  के आधार पर करते हैं. हम अपनी सफलता दूसरों की असफलता में देखते हैं—यानि अगर मैं जीता, तो तुम हारे, तुम जीते तो मैं हारा. इस तरह life एकzero-sum game बन जाती है. मानो एक ही रोटी हो, और अगर दूसरा बड़ा हिस्सा ले लेता है तो मुझे कम मिलेगा, और मेरी कोशिश होगी कि दूसरा अधिक ना पाए. हम सभी येgame  खेलते हैं, लेकिन आप ही सोचिये कि इसमें कितना मज़ा है?
Win -Win ज़िन्दगी कोco-operation की तरह देखती है, competition कीतरह नहीं.Win-Win दिल और दिमाग की ऐसी स्थिति है जो हमेंलगातार सभी काहित सोचने के लिए प्रेरित करती है.Win-Win का अर्थ है ऐसे समझौते और समाधान जो सभी के लिए लाभप्रद और संतोषजनक हैं. इसमें सभी   खाने को मिलती है, और वो काफी अच्छाtaste  करती है.
एक व्यक्ति या संगठन जोWin-Win attitude  के साथ समस्याओं को हल करने की कोशिश करता है उसके अन्दर तीन मुख्य बातें होती 
बहुत लोग either/or  केterms  में सोचते हैं: या तो आप अच्छे हैं या आप सख्त हैं. Win-Win में दोनों की आवश्यकता होती है. यह साहस और सूझबूझ के बीचbalance  करने जैसा है.Win-Win को अपनाने के लिए आपको सिर्फ सहानभूतिपूर्ण ही नहीं बल्कि आत्मविश्वाश से लबरेज़ भी होना होगा.आपको सिर्फ विचारशील और संवेदनशील ही नहीं बल्कि बहादुर भी होना होगा.ऐसा करनाकि -courage और  consideration मेंbalance  स्थापित हो, यहीreal maturity  है, और Win-Win  के लिए बेहद ज़रूरी है.
Habit 5: Seek First to Understand, Then to Be Understood / पहले दूसरों को समझो फिर अपनी बात समझाओ.
Communication  लाइफ की सबसे ज़रूरी skill  है. आप अपने कई साल पढना-लिखना और बोलना सीखने में लगा देते हैं. लेकिन सुनने का क्या है? आपको ऐसी कौनसी training  मिली है, जो आपको दूसरों को सुनना सीखाती है,ताकि आप सामने वाले को सच-मुच अच्छे से समझ सकें? शायद कोई नहीं? क्यों?
अगर आप ज्यादातर लोगों की तरह हैं तो शायद आप भी पहले खुद आपनी बात समझाना चाहते होंगे. और ऐसा करने में आप दुसरे व्यक्तिको पूरी तरह ignore कर देते होंगे , ऐसा दिखाते होंगे कि आप सुन रहे हैं,पर दरअसल आप बस शब्दों को सुनते हैं परउनके असली मतलब को पूरी तरह से miss  कर जाते हैं.
 सोचिये ऐसा क्यों होता है? क्योंकि ज्यादातर लोग इस intention  के साथ सुनते हैं कि उन्हें reply  करना है, समझना नहीं है.आप अन्दर ही अन्दर खुद को सुनते हैं और तैयारी  करते हैं कि आपको आगे क्या कहना है,क्या सवाल पूछने हैं, etc. आप जो कुछ भी सुनते हैं वो आपके life-experiences  से छनकर आप तक पहुचता है.
आप जो सुनते हैं उसे अपनी आत्मकथा से तुलना कर देखते हैं कि ये सही है या गलत. और इस वजह से आप दुसरे की बात ख़तम होने से पहले ही अपने मन में एक धारणा बना लेते हैं कि अगला क्या कहना चाहता है.  क्या ये वाक्य कुछ सुने-सुने से लगते है?
अरे, मुझे पता है कि तुम कैसा feel  कर रहे हो.मुझे भी ऐसा ही लगा था.” “मेरे साथ भी भी ऐसा ही हुआ था.” ” मैं तुम्हे बताता हूँ कि ऐसे वक़्तमें मैंने क्या किया था.”
चूँकि आप अपने जीवन के अनुभवों के हिसाब से ही दूसरों को सुनते हैं. आप इन चारों में से किसी एक तरीके से ज़वाब देते हैं:

शायदआप सोच रहे हों कि, अपनेexperience के हिसाब से किसी सेrelate करने में बुराई क्याहै?कुछsituations में ऐसा करना उचित हो सकत है, जैसे कि जब कोई आपसे आपके अनुभवों के आधार पर कुछ बतानेके लिए कहे, जब आप दोनों के बीच एकtrust कीrelationship हो. पर हमेशा ऐसा करना उचित नहीं है.
Habit 6: Synergize / ताल-मेल बैठाना
सरल शब्दों में समझें तो , “दो दिमाग एक से बेहतर हैं ” Synergize करने का अर्थ है रचनात्मक सहयोग देना. यह team-work है. यह खुले दिमाग से पुरानी समस्याओं के नए निदान ढूँढना है.
पर ये युहीं बस अपने आप ही नहीं हो जाता. यह एक process है , और उसी process से, लोग अपनेexperience और expertise को उपयोग में ला पाते हैं .अकेले की अपेक्षा वो एक साथ कहीं अच्छाresult दे पाते हैं. Synergy से हम एक साथ ऐसा बहुत कुछ खोज पाते हैं जो हमारे अकेले खोजने पर शायद ही कभी मिलता. ये वो idea है जिसमे the whole is greater than the sum of the parts. One plus one equals three, or six, or sixty–या उससे भी ज्यादा.
जब लोग आपस में इमानदारी से interact करने लगते हैं, और एक दुसरे से प्रभावित होने के लिए खुले होते हैं , तब उन्हें नयी जानकारीयाँ मिलना प्रारम्भ हो जाता है. आपस में मतभेद नए तरीकों के आविष्कार की क्षमता कई गुना बढ़ा देते हैं.
मतभेदों को महत्त्व देना synergy का मूल है. क्या आप सच-मुच लोगों के बीच जो mental, emotional, और psychological differences होते हैं, उन्हें महत्त्व देते हैं? या फिर आप ये चाहते हैं कि सभी लोग आपकी बात मान जायें ताकि आप आसानी से आगे बढ़ सकें? कई लोग एकरूपता को एकता समझ लेते हैं. आपसी मतभेदों को weakness नहीं strength के रूप में देखना चाहिए. वो हमारे जीवन में उत्साह भरते हैं.
Habit 7: Sharpen the Saw कुल्हाड़ी को तेज करें
Sharpen the Saw का मतलब है अपने सबसे बड़ी सम्पत्ति यानि खुद को सुरक्षित रखना. इसका अर्थ है अपने लिए एक प्रोग्राम डिजाईन करना जो आपके जीवन के चार क्षेत्रों physical, social/emotional, mental, and spiritual में आपका नवीनीकरण करे. नीचे ऐसी कुछ activities केexample दिए गए हैं:

Physical / शारीरिक :अच्छा खाना, व्यायाम करना, आराम करना
Social/Emotional /:सामजिक/भावनात्मक :औरों के ससाथ सामाजिक और अर्थपूर्ण सम्बन्ध बनाना.
Mental / मानसिक :पढना-लिखना, सीखना , सीखना.
Spiritual / आध्यात्मिक :प्रकृति के साथ समय बीताना , ध्यान करना, सेवा करना.

आप जैसे -जैसे हर एक क्षेत्र में खुद को सुधारेंगे, आप अपने जीवन में प्रगति और बदलाव लायेंगे.Sharpen the Saw आपको fresh रखता है ताकि आप बाकी की six habits अच्छे से practice कर सकें. ऐसा करने से आप challenges face करने की अपनी क्षमता को बढ़ा लेते हैं. बिना ऐसा किये आपका शरीर कमजोर पड़ जाता है , मस्तिष्क बुद्धिरहित हो जाता है, भावनाए ठंडी पड़ जाती हैं,स्वाभाव असंवेदनशील हो जाता है,और इंसान स्वार्थी हो जाता है. और यह एक अच्छी तस्वीर नहीं है, क्यों?
आप अच्छा feel करें , ऐसा अपने आप नहीं होता. एक balanced life जीने काअर्थ है खुद कोrenew करने के लिए ज़रूरी वक़्त निकालना.ये सब आपके ऊपरहै .आप खुद को आराम करकेrenew कर सकते हैं. या हर काम अत्यधिक करके खुद को जला सकते हैं . आप खुद को mentallyऔर spiritually प्यार कर सकते हैं , या फिर अपने well-being से बेखबर यूँ ही अपनी ज़िन्दगी बिता सकते हैं.आप अपने अन्दर जीवंत उर्जा का अनुभव कर सकते हैं या फिर टाल-मटोल कर अच्छे स्वास्थ्य और व्यायाम के फायदों को खो सकते हैं.
आप खुद को पुनर्जीवित कर सकते हैं और एक नए दिन का स्वागत शांति और सद्भावके साथ कर सकते हैं.या फिर आप उदासी के साथ उठकर दिन को गुजरते देख सकतेहैं. बस इतना याद रखिये कि हर दिन आपको खुद को renew करने का एक नया अवसरदेता है, अवसर देता है |




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ईश्वर की माया ही अलग है ।

नमस्कार दोस्तों मैं आज आपके समक्ष एक ऐसी घटना को प्रस्तुत कर रहा हूं जिससे आप सभी भलीभांति वाकिफ हैं कुछ ही दिनों पहले हमारे प्रवासी भाइयों के साथ में एक घटना हुई ,हम मानते हैं प्रवासी भाई मारवाड़ से बाहर बैठा हर बिजनेसमैन हमारे मारवाड़ की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं उनको सम्मान पूर्वक घर लाना ,उनको सम्मान पूर्वक वापस बिजनेस तक पहुंचाना यह सरकार, की प्रशासन की औऱ हम सब की एक सामूहिक जिम्मेदारी बनती है ।कुछ कारण रहे होंगे मारवाड़ी भाई वहां से निकले वहां से रवाना हुए कुछ मजबूरियां रही होगी उनकी भी कि जल्दी जल्दी घर पहुंच जाते हैं क्या पता कल को फिर क्या हो जाए और आदमी जब जल्दी बाजी में होता है जब परेशानी में होता है तो फिर वह अपने हिसाब से निर्णय भी लेता है और अपने हिसाब से वह काम भी करता है खैर इस घटना में सरकार को प्रशासन को घर वालों को दोस्तों को साथ वालों को प्रवासियों को खुद को किसी को भी दोष देना शायद उचित  नहीं होगा ।  इस स्थिति में वह कहते हैं ना कि होनी क्या होनहार जब मां के पेट में बच्चा गर्भ धारण करता है उसी समय उसकी जीवन की सम्पूर्ण रचना विधाता द्वारा रच दी जाती है । मां विधाता को इतना ही पसंद था मैं बहुत दुखी हो गया जब इस घटना के बारे में सुना बेलगाम में भी काफी प्रवासी भाइयों से बात की । बंधुओं से बात हुई तो बोला कि हां घटना सच है फिर भी मुझे लगा कि भगवान राजेश्वर और ईश्वर की कृपा से सारे बंदे बस जाएंगे । लेकिन ईश्वर की माया तो वही जानता है हमारी कोई औकात तक नही की हम कुछ ईश्वर की माया का अंदाजा तक लगा सके। मित्र घटना ऐसी हुई कि एक लड़का भोलाराम चौधरी नाम का ईश्वर को प्यारा हो गया । कुछ वीडियो सामने आए वो  उसने वीडियो कब बनाए हैं कब नहीं बनाये है । तथ्यात्मक ओर प्रमाणिक जानकारी तो मैं नहीं कह सकता लेकिन वह वीडियो जो सामने आ रहे हैं ऐसा कहा जा रहा है कि इस बच्चे ने  बेंगलुरु से रवाना होने से पहले बना करके अपने अकाउंट पर डाले थे । जो वीडियो बनाये है वो साबित करते है कि उसकी आत्मा को सब कुछ पता चल गया था कि यहां से निकलने के बाद मेरे साथ क्या होने वाला है । मेने सब वीडियो सुने ,बेहद सन्देशपूर्ण , बेहद समझदारी ओर सूझबूझ भरे , संदेशवाहक वीडियो , सुनकर बहुत दुख हुआ ।मैं इस बच्चे को किसी एक्टर से कम नहीं मानता, मैं इस बच्चे को किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं मानता, कितना प्यारा कम उम्र का लड़का लड़का होगा । झकझोर दिया इस घटना ने परिवार पर जो बीती होगी उसका अंदाजा भी हमारे बस की बात नही सकते आज हिम्मत करके इनके बड़े भाई साब गणेशाराम जी से बात हुई । हिम्मत दी , समझाया, ईश्वर की अमाया है , होनी क्या होनहार , होनी थी हो गई कोई टाल नही पाया । उन्हें ढांढस बंधाया । बड़े भाई साहब से काफी लंबी बात करके समझाया मां-बाप को हिम्मत देने की बात कही उन्हें भी अच्छा लगा । उन्होंने बताया काफी उत्साही ओर हौसले वाला कही नही अटकने वाला भाई था मेरा , बहुत ही मार्मिक ओर गहरी बात सुनकर आंखों ने जवाब दे दिया । परिवार से बात करके मेरा भी कुछ दिल हल्का हुआ ।
मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करना चाहता हूं एक कविता के माध्यम से आपको कुछ अनुभूतियां करवाना चाहता हूं कि जब इस दुनिया में परिवार का साथ देने वाला मेंबर हो  या भाई हो या छोटा हो या बड़ा हुआ जब दुनिया से चला जाता है तब का साथ भाई को  नहीं रहता तब क्या स्थितियां बनती है वह भाई किस तरीके से उनकी याद में तड़प तड़प कर रोता है

मेरे भाई साहब स्वर्गीय भभुतारामजी (2000) ओर भाई स्वर्गीय भोलाराम चौधरी को समर्पित ।

         "" मेरा भाई ""
याद ने आज फिर सताया है
 फिर वही किस्सा याद आया है
वही जगह ,वही पेड़ ,वही समय
सब तो आज वही हो आया है
बस आज भाई नहीं आया है 

वही खेत, वही खलिहान
वहीं पेड़ की छाया है
वही खेत की फसलें हैं
बस कंधे पर भाई का हाथ नहीं
सब तो आज वही हो आया है ।
बस आज भाई नहीं आया है ।।

आज गांव की पाठशाला कक्ष गया
उसी पेड़ की छाया तले पहुंच गया
वही जगह, वही कोना, वही कक्ष
वही समय, वही घड़ी, वही माहौल
सब तो आज वही हो आया है ।
बस आज भाई नहीं आया है ।।

घर के आंगन में टूटी खटाई पर
दोनों एक साथ वही मस्ती
वही नोकझोंक ,वही लड़ाई
वही रूठना और वही मनाना
आज फिर से सब कुछ वही हो आया है ।
हमेशा की तरह मनाने वाला 
 बस आज भाई नहीं आया है ।।

वही घर ,वही आंगन वही ,परिवार
वही पारिवारिक नोकझोंक
वही बढ़ती जिम्मेदारियां
वही बिन बदलने वाला रवैया
सब कुछ तो आज वही हो आया है
बस जिम्मेदारीयां लेकर
मेरा हौसला बढ़ाने वाला
आज भाई नहीं आया है ।।

बिन रुके समय बीत गया
देखते-देखते परिवार बढ़ गया
सब कुछ भूल भुलाकर हसरतें जवान हो गई
दुख दर्द भुलाकर संताने नौजवान हो गई
सब भूल गए वह किस्से
जमाने के लिए मात्र कहानियां हो गई
आज भी याद नहीं जाती मुझसे
हर पल ,हर जगह ,हर साल
बस मुझ में आप ही आप हो
जीवन की नैया में सबकुछ हो आया 
पर आज तक मेरा भाई
कभी सपने में भी नहीं आया है ।
सब कुछ तो वही होने आया है ।
बस आज फिर भाई नहीं आया है ।।

आपका अपना छोटा भाई 
लेखक -- रमेश भाई आँजणा

मित्रो मैं आप सभी इस स्तिथि में हाथजोडकर विनती करना चाहता हु की जो होना है वो होगा ही होगा लेकिन आप सभी जहां हो वही रहो , शासन प्रशासन , सरकार , समाजसेवी सभी लोग अपनी पूरी कोशिश में है कि सबकी मदद की जाए । लेकिन अपना निर्णय अपने हाथ है । 
सुरक्षित रहे ।
वाहन सम्भलकर चलाये ।
अपना ओर परिवार का पूरा पूरा ख्याल रखे । जहां हो वही अपना घर है , सुरक्षित रहिए , बुरा समय आता जरूर है लेकिन आखिर कट ही जायेगा , धैर्य के साथ थोड़े दिन खुद की रक्षा करे ।
बस जीवन है तो सब पा लेंगे ।
स्वर्गीय भाई भोलाराम की आत्मा को ईश्वर शांति प्रदान करे और इस परिवार को यह सदमा सहन करने की शक्ति दे ।
आपका अपना 
रमेश भाई आँजणा
9413885566

Saturday, May 2, 2020

"भारत के गावो का जीवन

"भारत के गावो का जीवन "


भारतवर्ष प्रधानतः गांवों का देश है। यहाँ की दो-तिहाई से अधिक जनसँख्या गांवों में रहती है।इसका एक मुख्य कारण कि उनका मुख्य निर्भरता वाला व्यवसाय खेती हे और इस  पर वो निर्भर है। भारत में लगभग छह लाख गाव हे ! जहा देश की दो तिहाई जनसंख्या निवास करती हो उस जगह का विकाश नहीं  हो  तो देश के विकाश की कल्पना तक करना एक विचार मात्र होगा  इसलिए गांवों के विकास के बिना देश का विकास किया जा सकता है, ऐसा सोचा  भी नहीं जा सकता।क्योकि गाव भारत का आइना हे यहाँ भारत की वास्तविक छवि उभरती हे ! में तो यही कहूँगा की गाव ही भारत हे , यहाँ के गाव ही ये देश हे ! लेकिन कहने के लिए बहुत कुछ पर हकीकत में कुछ थोड़ा सा काम अभी बाकि हे !गावो की जनता अभी भी झोपड़ी में निवास करती हे घास फुस की बनी  वो छप्पर, कीचड़ मिटटी के बने वो कच्चे आँगन ! अब भी वो कच्ची टूटी हुई सड़के जो हमें गावो का रास्ता दिखाती हे !हरियाली से घिरे वो गाव ,सब्जी ,फलों  एवं पेड़ पोधो की छटाएं अपनी हरियाली के नखरे बिखेरती  और अपनी खुशबु  से आने जाने वालो को सराबोर करती वो रौनक , और इन  छायादार पेड़ो की रौनक के बीच इनके निचे बैठकर गावो के लोगो की वो जुगल बंदी वो विश्राम वो प्यार वो चौपाल वो हुका परस्ती और अपने सुख दुःख की वार्तालाप , बस ये सब और कही नहीं बल्कि भारत के गावो में आज भी मौजूद हे ! गाव के बाहर  का वो कुआ जहाँ गाव की सारी  पनहारिया अपना घड़ा कमर में पकड़ के एक साथ बाते  करती हुई पानी भरने जाती हे प्रात काल और साँझ की बेला की वो रौनक केवल गाव के कुओ पर ही पाई जा सकती हे और कही नहीं ! भारत की संस्कृस्ति की शान घूँघट निकाले वो पनहारिया तीन तीन मटके अपने हाथो में पकडे ,अपने ही अंदाज में अपने समूहों में बाते करती और साथ ही साथ उनकी पायलों की वो झंकार उस जगह का माहोल ही अलग बना देती हे !यहाँ के गावो का ये माहोल और कही नहीं पाया जा सकता !ताजी प्रदुषण रहित  हवा का आनंद,खुले मैदान ,हरे भरे खेत , भरे पुरे खलिहान यहाँ का रमणीय दृश्य प्रस्तुत करते हे ! यहाँ का सात्विक एवं पोस्टिक भोजन उम्र  दराज लोगो की सेहत तक का परिचय करवाता हे !गावो का विद्यालय जिसमे कमरो का अभाव और साथ ही साथ अध्यापको का भी अभाव होता हे और गावो की निचे पेड़ की छाया में कट्टे , बोरी बिछा कर बैठने की प्रथा का आनंद डेल्ही पब्लिक स्कूल में भी नहीं मिल सकता ! बेशक शाम तक कपडे गंदे हो जाते हे ! सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय एवं प्रकृति की गोद  में निवास करते गावो के लोग अपने जीवन का एक अलग ही आनंद लेते हे ,किसानो को सुबह और शाम अपने पशुओ को खेतो में चराने ले जाते और ले आते  पशुओ के गले में बंधी उस घंटी की मधुर आवाज एक संगीतमय शाम का अहसास करवाती हे ! इन सब अद्भुत आकर्षण दृश्यों का अनुभव सिर्फ और सिर्फ भारत के गावो में ही लिया जा सकता  हे और कही नहि !
यह एक सास्वत सत्य हे कि हर एक बुरा पहलु एक अच्छाइ  लिए होता हे तो  अच्छा पहलु कोई कमजोरी भी लिये होता हे!हर अँधेरे के पीछे एक उजाले की किरण  होती हे तो उस उजाले के पीछे एक अँधेरे की की घनी छाव भी जरूर नजर आती हे ! गावो की  इन सब बातो के बावजूद कुछ सुने अनसुने ऐसे भी पहलु हे की यदि यही देश की आत्मा हे यही देश की शान हे यही देश का मान हे तो फिर यहाँ इन कई सारी समस्याओं का बोलबाला क्यों !पुलिस  स्टेशन का अभाव, पोस्ट ऑफिस का अभाव ,स्वस्थ्य सेवाओ का अभाव काफी सारी असुविधाये जो हमें एक  कठिन  जीवन का अहसास जरूर कराती हे ! साथ ही साथ अशिक्षा के कारन लोगो के उस एक डर के कारन कुछ असामाजिक तत्वों का खुले आम घूमना !  कई सारी  अच्छाइयों के साथ साथ कई सारी  समस्याएं भी हर जगह रहती हे ! जो हर सिक्के का एक पहलु होता हे इस बात से गाव भी अछूते नहीं रह सकते !
भारत का इतिहास भी एक गौरवशाली और काफी गहन हे कई पड़ावों वाला इतिहास हम कह सकते हे  एक लम्बे अरसे तक अंग्रेजी हुकूमतों के साथ साथ कई और हुकूमतों ने भी इस देश पर शासन  किया ! इस काल में उन्होंने जैसे चाहा वैसे किया ! वो उनका समय था , होना लाजमी था ! स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के गावो ने बहुत हद तक उन्नति की हे! यह स्तिथि अंग्रेजो के जाने के बाद के समय के गावो को आज के गावो से तुलना करके देखा जा सकता हे ! स्वतंत्र भारत की सरकार ने गावो की उन्नति के लिए काफी प्रयत्न किये ! लेकिन फिर भी आज से कुछ समय पहले तक की स्तिथि को देखा जाये तो कई सारी समस्याएं सर उठाये खड़ी थी अपना एक पूर्ण दबदबा बनाये खड़ी थी ! उनका कारण उसी सिक्के का दुसरा ही पहलु था ना की दूसरे सिक्के का कोई पहलु ! 

  अंग्रेजी हुकूमत के जाने के बाद स्वाधीन भारत ने अपने सिरे से देश का विकास सुरु किया और  खेती के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। 1952 में जब पहली पंचवर्षीय योजना का आरम्भ हुआ तो उसमें खेती के विकास पर सबसे अधिक ध्यान दिया गया।

खेती के विकास के साथ-साथ ग्राम-विकास कि गति भी बढ़ी। आज भारत के अधिकाँश गांवों में पक्के मकान पाये जाते हैं। लगभग सभी किसानों के पास अपने हल और बैल हैं। बहुतों के पास ट्रेक्टर आदि भी पाये जाते हैं।कुछ किसानो ने अपनी व्यवसाय से बढ़ती आय के कारन थोड़ा और आगे बढ़कर कुछ नए खेती के उपकरणों का उपयोग भी सुरु किया हे जिससे किसानों कि आय भी बढ़ी है। पहले की तुलना में आज के भारत के गावो में ग्राम-सुधार की दृष्टि से शिक्षा पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। आज अधिकाँश गांवों में प्राथमिक पाठशालाएँ हैं। जहाँ नहीं हैं, वहाँ भी पाठशाला खोलने के प्रयत्न चल रहे हैं। काफी सारी  सरकारी योजनाओ के बावजूद भी किसान की स्तिथि में ज्यादा सुधार नहीं आया हे ,, हां ये जरूर हे की सरकार की कुछ योजनाये काफी हद तक अच्छा कुछ करने में सफल हुई हे ! लेकिन किसानों की दयनीय स्थिति का एक प्रमुख कारण ऋण है। जैसा मेने पहले उजागर किया की किसानो की स्तिथि को दयनीय बनाने में अपने ही लोगो की अपने ही सिक्के के एक पहलु की ही भूमिका हे वो हे  सेठ-साहूकार  जो थोडा सा क़र्ज़ किसान को देकर उसे अपनी फसल बहुत कम दाम में बेचने को मजबूर कर देते हैं। हां सरकार ने इस तरफ अपना ध्यान आकर्षिक करके अपना काम सुरु किया हे जो काफी सफल भी हो रहा हे  इसलिए गांवों में बैंक खोले जा रहे हैं जो मामूली ब्याज पर किसानों को ऋण देते हैं। और भी इससे थोड़ा सा आगे बढ़कर सरकार ने किसानो को और गावो को आधुनिकता से जोड़कर   कई नई  योजनाओ की सुरुआत भी की हे जो एक हद तक सार्थक हो रही हे ,, पर पूर्ण रूप से नहीं !

जिसमे की  ग्रामीण व्यक्तियों को विभिन्न व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हथकरघा और हस्त-शिल्प की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। विचार यह है कि छोटे उद्योगों व कुटीर उद्योगों की स्थापना से किसानों को लाभ हो।

पहले गांवों में यातायात के साधन बहुत कम थे। गांव से पक्की सड़क 15-20 किलोमीटर दूर तक हुआ करती थी। कहीं-कहीं रेल पकड़ने के लिए ग्रामीणों को 50-60 किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ता था। अब धीरे-धीरे यातायात के साधनो का विकास किया जा रहा है।

फिर भी ग्राम-सुधार की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। अभी भी अधिकाँश किसान निरक्षर हैं। गांवों में उद्योग धंधों का विकास अधिक नहीं हो सका है। ग्राम-पंचायतों और न्याय-पंचायतों को धीरे-धीरे अधिक अधिकार प्रदान किये जा रहे हैं। इसलिए यह सोंचना भूल होगी कि जो कुछ किया जा चुका है, वह बहुत है। वास्तव में इस दिशा में जितना कुछ किया जाये, कम है।

हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि गांवों के विकास पर ही देश का विकास निर्भर है। यहाँ तक कि बड़े उद्योगों का माल भी तभी बिकेगा जब किसान के पास पैसा होगा। थोड़ी सी सफाई या कुछ सुविधाएँ प्रदान कर देने मात्र से गांवों का उद्धार नहीं हो सकेगा। गांवों की समस्याओं पर पूरा-पूरा ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
 मै तहे दिल से अपना आभार प्रकट करता हु मेरे अजीज मित्र और  पत्रकार श्री रुद राम चौधरी  का की उनके के इस नेक कार्य एवं आग्रह पर मुझे ये लेख लिखने  का सौभाग्य प्राप्त हुआ  ! क्युकी सरकार बहुत सी योजनाये और कई सारी नीतिया पास करती हे पर भारत के उस अंतिम छोर तक वो नहीं पहुंच पति क्योकि  शिक्षा की कमी के कारण  ,,इसलिए ग्रामीण राजस्थान के लिए शुरू ये पहल इस दिशा में भी एक अहम् और मिल का पथ्थर साबित होगी  ,! गावो के किसान भाइयो को , उम्र दराज  माता पिताओ को ,, और अशिक्षित माता बहनो को अपने अभिकरो का और अपने लिए निकाली गई सरकारी योजनाओ का पता चलेगा और वो इसका फायदा उठा पाएंगे !

 अंतत में इतना ही कह पाउँगा की आज तक भारत के गावो का जो विकाश हुआ हे वो केवल ऊट  के मुह में जीरा ही कहा जा सकता यह! अभी बहुत कुछ करना होगा और देश के कर्णधारो को ये समझना होगा की भारत को विकसित देश बनाना हे तो सुरुआत गावो से ही करनी होगी ! क्योकि देश को खाना देने वाले दान दाता  अन्न दाता गावो में ही बसते  हे ! यहाँ देश की आत्मा निवास करती हे , यही देश का ह्रदय हे !
जय हिन्द जय भारत  ! जय जवान जय किसान !
                                                                        लेखक :- रमेश भाई आँजणा
                                                                       
                                                                       
                                                                       
                                                                       
                                                                       
                                                               
                                                                     







मेरी बेटी कविता द्वारा बनाई बाबा साहेब की तस्वीर ।

कोरोना से डरना नही -आत्म विश्वास से लड़ना है ।

*ओशो* गजब का *ज्ञान* दे गये, *कोरोना* जैसी *जगत बिमारी* के लिए

*70* के *दशक* में *हैजा* भी *महामारी* के रूप में पूरे *विश्व* में फैला था, तब *अमेरिका* में किसी ने *ओशो रजनीश जी* से प्रश्न किया
-"इस *महामारी* से कैसे  बचे ?"

*ओशो* ने विस्तार से जो समझाया वो आज *कोरोना* के सम्बंध में भी बिल्कुल *प्रासंगिक* है।

                       *ओशो*

"यह *प्रश्न* ही आप *गलत* पूछ रहे हैं,

*प्रश्न* ऐसा होना चाहिए था कि *महामारी* के कारण मेरे मन में *मरने का जो डर बैठ गया है* उसके सम्बन्ध में कुछ कहिए!

इस *डर* से कैसे बचा जाए...?

क्योंकि *वायरस* से *बचना* तो बहुत ही *आसान* है,

लेकिन जो *डर* आपके और *दुनिया* के *अधिकतर लोगों* के *भीतर* बैठ गया है, उससे *बचना* बहुत ही *मुश्किल* है।

अब इस *महामारी* से कम लोग, इसके *डर* के कारण लोग ज्यादा *मरेंगे*.......।

*’डर’* से ज्यादा खतरनाक इस *दुनिया* में कोई भी *वायरस* नहीं है।

इस *डर* को समझिये, 
अन्यथा *मौत* से पहले ही आप एक *जिंदा* लाश बन जाएँगे।

यह जो *भयावह माहौल* आप अभी देख रहे हैं, इसका *वायरस* आदि से कोई *लेना* *देना* नहीं है।

यह एक *सामूहिक पागलपन* है, जो एक *अन्तराल* के बाद हमेशा घटता रहता है, कारण *बदलते* रहते हैं, कभी *सरकारों की प्रतिस्पर्धा*, कभी *कच्चे तेल की कीमतें*, कभी *दो देशों की लड़ाई*, तो कभी *जैविक हथियारों की टेस्टिंग*!!

इस तरह का *सामूहिक* *पागलपन* समय-समय पर *प्रगट* होता रहता है। *व्यक्तिगत पागलपन* की तरह *कौमगत*, *राज्यगत*, *देशगत* और *वैश्विक* *पागलपन* भी होता है।

इस में *बहुत* से लोग या तो हमेशा के लिए *विक्षिप्त* हो जाते हैं या फिर *मर* जाते हैं ।

ऐसा पहले भी *हजारों* बार हुआ है, और आगे भी होता रहेगा और आप देखेंगे कि आने वाले बरसों में युद्ध *तोपों* से नहीं बल्कि *जैविक हथियारों* से लड़ें जाएंगे।

🌹मैं फिर कहता हूं हर समस्या *मूर्ख* के लिए *डर* होती है, जबकि *ज्ञानी* के लिए *अवसर*!!

इस *महामारी* में आप *घर* बैठिए, *पुस्तकें पढ़िए*, शरीर को कष्ट दीजिए और *व्यायाम* कीजिये, *फिल्में* देखिये, *योग*  कीजिये और एक माह में *15* किलो वजन घटाइए, चेहरे पर बच्चों जैसी ताजगी लाइये
अपने *शौक़* पूरे कीजिए।

मुझे अगर *15* दिन घर  बैठने को कहा जाए तो में इन *15* दिनों में *30* पुस्तकें पढूंगा और नहीं तो एक *बुक* लिख डालिये, इस *महामन्दी* में पैसा *इन्वेस्ट* कीजिये, ये अवसर है जो *बीस तीस* साल में एक बार आता है *पैसा* बनाने की सोचिए....क्युं बीमारी की बात करके वक्त बर्बाद करते हैं...

ये *’भय और भीड़’* का मनोविज्ञान सब के समझ नहीं आता है।

*’डर’* में रस लेना बंद कीजिए...

आमतौर पर हर आदमी *डर* में थोड़ा बहुत रस लेता है, अगर *डरने* में मजा नहीं आता तो लोग *भूतहा* फिल्म देखने क्यों जाते?

☘ यह सिर्फ़ एक *सामूहिक पागलपन* है जो *अखबारों* और *TV* के माध्यम से *भीड़* को बेचा जा रहा है...

लेकिन *सामूहिक पागलपन* के *क्षण* में आपकी *मालकियत छिन* सकती है...आप *महामारी* से *डरते* हैं तो आप भी *भीड़* का ही हिस्सा है

*ओशो* कहते है...TV पर खबरे सुनना या *अखबार* पढ़ना बंद करें

ऐसा कोई भी *विडियो* या *न्यूज़* मत देखिये जिससे आपके भीतर *डर* पैदा हो...

*महामारी* के बारे में बात करना *बंद* कर दीजिए, 

*डर* भी एक तरह का *आत्म-सम्मोहन* ही है। 

एक ही तरह के *विचार* को बार-बार *घोकने* से *शरीर* के भीतर *रासायनिक* बदलाव  होने लगता है और यह *रासायनिक* बदलाव कभी कभी इतना *जहरीला* हो सकता है कि आपकी *जान* भी ले ले;

*महामारी* के अलावा भी बहुत कुछ *दुनिया* में हो रहा है, उन पर *ध्यान* दीजिए;

*ध्यान-साधना* से *साधक* के चारों तरफ  एक *प्रोटेक्टिव Aura* बन जाता है, जो *बाहर* की *नकारात्मक उर्जा* को उसके भीतर *प्रवेश* नहीं करने देता है, 
अभी पूरी *दुनिया की उर्जा* *नाकारात्मक*  हो चुकी  है.......

ऐसे में आप कभी भी इस *ब्लैक-होल* में  गिर सकते हैं....ध्यान की *नाव* में बैठ कर हीं आप इस *झंझावात* से बच सकते हैं।

*शास्त्रों* का *अध्ययन* कीजिए, 
*साधू-संगत* कीजिए, और *साधना* कीजिए, *विद्वानों* से सीखें

*आहार* का भी *विशेष* ध्यान रखिए, *स्वच्छ* *जल* पीए,

*अंतिम बात:*
*धीरज* रखिए... *जल्द*  ही सब कुछ *बदल* जाएगा.......

जब  तक *मौत* आ ही न जाए, तब तक उससे *डरने* की कोई ज़रूरत नहीं है और जो *अपरिहार्य* है उससे *डरने* का कोई *अर्थ* भी नहीं  है, 

*डर* एक  प्रकार की *मूढ़ता* है, अगर किसी *महामारी* से अभी नहीं भी मरे तो भी एक न एक दिन मरना ही होगा, और वो एक दिन कोई भी  दिन हो सकता है, इसलिए *विद्वानों* की तरह *जीयें*, *भीड़* की तरह  नहीं!!"

                    -:  *ओशो*  :-

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का सटीक रामबाण

  जो सोचा नही था , वो समय आज गया । ऐसा समय आया कि लोगो को सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि उस समय क्या किया जाए । आज की लोगो की जीवनशैली की वजह से...