Thursday, January 29, 2015

सब्र का फल,



बात उस समय की है जब महात्मा बुद्ध विश्व भर में भ्रमण करते हुए बौद्ध धर्म का प्रचार कर रहे थे और लोगों को ज्ञान दे रहे थे|
एक बार महात्मा बुद्ध अपने कुछ शिष्यों के साथ एक गाँव में भ्रमण कर रहे थे| उन दिनों कोई वाहन नहीं हुआ करते थे सो लोग पैदल ही मीलों की यात्रा करते थे| ऐसे ही गाँव में घूमते हुए काफ़ी देर हो गयी थी| बुद्ध जी को काफ़ी प्यास लगी थी| उन्होनें अपने एक शिष्य को गाँव से पानी लाने की आज्ञा दी| जब वह शिष्य गाँव में अंदर गया तो उसने देखा वहाँ एक नदी थी जहाँ बहुत सारे लोग कपड़े धो रहे थे कुछ लोग नहा रहे थे तो नदी का पानी काफ़ी गंदा सा दिख रहा था|
शिष्य को लगा की गुरु जी के लिए ऐसा गंदा पानी ले जाना ठीक नहीं होगा, ये सोचकर वह वापस आ गया| महात्मा बुद्ध को बहुत प्यास लगी थी इसीलिए उन्होनें फिर से दूसरे शिष्य को पानी लाने भेजा| कुछ देर बाद वह शिष्य लौटा और पानी ले आया| महात्मा बुद्ध ने शिष्य से पूछा की नदी का पानी तो गंदा था फिर तुम साफ पानी कैसे ले आए| शिष्य बोला की प्रभु वहाँ नदी का पानी वास्तव में गंदा था लेकिन लोगों के जाने के बाद मैने कुछ देर इंतजार किया| और कुछ देर बाद मिट्टी नीचे बैठ गयी और साफ पानी उपर आ गया|
बुद्ध यह सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और बाकी शिष्यों को भी सीख दी कि हमारा ये जो जीवन है यह पानी की तरह है| जब तक हमारे कर्म अच्छे हैं तब तक सब कुछ शुद्ध है, लेकिन जीवन में कई बार दुख और समस्या भी आते हैं जिससे जीवन रूपी पानी गंदा लगने लगता है| कुछ लोग पहले वाले शिष्य की तरह बुराई को देख कर घबरा जाते हैं और मुसीबत देखकर वापस लौट जाते हैं, वह जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ पाते वहीं दूसरी ओर कुछ लोग जो धैर्यशील होते हैं वो व्याकुल नहीं होते और कुछ समय बाद गंदगी रूपी समस्याएँ और दुख खुद ही ख़त्म हो जाते हैं|
तो मित्रों, इस कहानी की सीख यही है कि समस्या और बुराई केवल कुछ समय के लिए जीवन रूपी पानी को गंदा कर सकती है| लेकिन अगर आप धैर्य से काम लेंगे तो बुराई खुद ही कुछ समय बाद आपका साथ छोड़ देगी|
thanks to writer

Sunday, December 28, 2014

इन्सांन    को   सब    पता   हे
सिर्फ    नाम    के    माहिर  हे
वरना ये,,,,,,,,,,,
गलत्त फ़हमिओ के शिकार   नहीं   होते
काश,,धर्म और   इंसानियत  का
ज्ञान   होता   इन्हे,,,,,,,,,,,,,,,,
तो आज      धर्म के     नाम पर
हैवानियत  के  नंगे  नाच  नहीं होते  
               आर बी आँजणा
आज एक बस्ती में गया ,वहां पांच मिनट बिताकर ,
वहां बैठ कर ,,लिखी चार पंक्तिया ,,
आपसे शेयर करता हु ,,,,,,,,,,,,,,,

ये वो गली हे जहा मजदूर रहता हे
ये वो जगह हे जहा सूरज सीधा चमकता हे !

रहजनों क्यों सताते हो इसे,अपनी झुग्गी में रहता हे
चाहे जमाना कुछ भी करे ये मस्त रहता हे !

हर रात सपने में ,वो अपना घ्रर बनाता हे
और वो आकर रोज बा शब् बस्तिया जलाता हे!

रहजन लुटते है बस्तिया रात भर
बनाते हे महल किसी और की कमाई से
पर वो पथ्थर तोड़कर अपना परिवार पालता हे !

लाखो के दिलो में उठे शोले बुजाने की हिम्मत रखता हे
घायलो को मरहम लगाना ही उसके लिए सजा बनता हे !
आर बी आँजणा
पथ्थर      दिलो   की  ये  दुनिया  हे
उसको क्या  जाने जो अपना होता हे
ये जालिम अहले  दिल हस्ते भी उस ,वक्त हे
जब         कोई   ,,,    बर्बाद        होता   हे
                             आर बी आँजणा

Friday, December 19, 2014

: वक़्त से लड़ कर जो नसीब बदल दे, इंसान वही जो अपनी तक़दीर बदल दे;
कल क्या होगा कभी ना सोचो, क्या पता कल वक़्त खुद अपनी तस्वीर ही बदल दे।
: बीते कल का अफ़सोस और आनेवाले कल की चिंता,
दो ऐसे चोर हैं जो हमारे आज की ख़ूबसूरती को चुरा ले जाते हैं।
: उपलब्धि और आलोचना एक दुसरे की मित्र है,
उपलब्धियां बढ़ेंगी तो निश्चित ही आलोचना भी बढ़ेगी।
: सपना वो नहीं जो नींद में आए, दिल में झूठी उम्मीद जगाए;
सपना वो है जो सोने ना दे और जीवन में कभी रोने ना दे।
: अगर कोई आपको नजरअंदाज करता है तो बुरा महसूस मत करो।
लोग अक्सर मूल्यवान चीज़ों को ही नजरअंदाज करते हैं, क्योंकि उनका मूल्य उनके पास नहीं होता।
: एक बहुत अच्छी बात जो ज़िंदगी भर याद रखिए:
आप का खुश रहना ही आप का बुरा चाहने वालो के लिए सबसे बड़ी सज़ा है।
: विद्या से विनम्रता आती है;
विनम्रता से पात्रता आती है।

Thursday, December 4, 2014

बेईमानी     की     छत     पे  बैठा    हु
वहा  से    ताजा   नजारा   देख  रहा  हु
बेईमानो  के  घर बनते    देख   रहा हु
इमानदारो   के घर उजड़ते देख रहा हु
बेईमानी के भाव    बढ़ते,खूब बिकते देख  रहा हु
ईमानदारी केभाव घटते गोदामभरते  देख रहा हु
बाबागिरी  के अलाम   कुछ     यु देख  रहा हु
की उन बेईमानो   को जेल में बैठे देख  रहा हु
रिस्तो की   डोर   कमजोर  होते देख  रहा हु
भाई भाई और बाप बेटे  में दरारे देख  रहा हु
कुछ को चरित्र के लिए मरते  देख रहा हु 
तो कुछको सूरत संवार करबाजीलुटते देख रहा हु
बुलंदीआ   छूना  तो  मुझे भी  बखूबी  आता हे
पर दुसरो को     गिराने का  हुनर   ,लोग        
  कहा से लाते   हे    ,यही देख      रहा हु
सभ्यताएवं  संस्कृति का होता नाश देख रहा हु
आधुिकता    के नाम पे                           
    लोगो    के     नंगे होते        देख    रहा हु
                    आर बी आँजणा

Sunday, November 30, 2014

क्यों  रोता हे अकेला
दो आंसू मुझे भी दे दे
मत तड़प तू अकेला
थोड़ा सा दुःख जरा ,, बयां कर दे
गाव से आया हु शहर की तरफ
थोड़ा सा काम मुझे भी दे दे
पुरखो की वो अमानत साथ लाया हु
थोड़ी सी सभ्यता ,,संस्कृति तू भी ले ले
थोड़ी सी अमानत बाँट  दे ,,
जरुरत मन्दो  को .......की
ये आरजू रहे उनकी ख़ुदा से ,,
थोड़ी सी चैन ,,,शांति ,,,,
वो........तुजे भी दे दे
             आर बी आँजणा

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का सटीक रामबाण

  जो सोचा नही था , वो समय आज गया । ऐसा समय आया कि लोगो को सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि उस समय क्या किया जाए । आज की लोगो की जीवनशैली की वजह से...