Sunday, December 28, 2014

आज एक बस्ती में गया ,वहां पांच मिनट बिताकर ,
वहां बैठ कर ,,लिखी चार पंक्तिया ,,
आपसे शेयर करता हु ,,,,,,,,,,,,,,,

ये वो गली हे जहा मजदूर रहता हे
ये वो जगह हे जहा सूरज सीधा चमकता हे !

रहजनों क्यों सताते हो इसे,अपनी झुग्गी में रहता हे
चाहे जमाना कुछ भी करे ये मस्त रहता हे !

हर रात सपने में ,वो अपना घ्रर बनाता हे
और वो आकर रोज बा शब् बस्तिया जलाता हे!

रहजन लुटते है बस्तिया रात भर
बनाते हे महल किसी और की कमाई से
पर वो पथ्थर तोड़कर अपना परिवार पालता हे !

लाखो के दिलो में उठे शोले बुजाने की हिम्मत रखता हे
घायलो को मरहम लगाना ही उसके लिए सजा बनता हे !
आर बी आँजणा
पथ्थर      दिलो   की  ये  दुनिया  हे
उसको क्या  जाने जो अपना होता हे
ये जालिम अहले  दिल हस्ते भी उस ,वक्त हे
जब         कोई   ,,,    बर्बाद        होता   हे
                             आर बी आँजणा

Friday, December 19, 2014

: वक़्त से लड़ कर जो नसीब बदल दे, इंसान वही जो अपनी तक़दीर बदल दे;
कल क्या होगा कभी ना सोचो, क्या पता कल वक़्त खुद अपनी तस्वीर ही बदल दे।
: बीते कल का अफ़सोस और आनेवाले कल की चिंता,
दो ऐसे चोर हैं जो हमारे आज की ख़ूबसूरती को चुरा ले जाते हैं।
: उपलब्धि और आलोचना एक दुसरे की मित्र है,
उपलब्धियां बढ़ेंगी तो निश्चित ही आलोचना भी बढ़ेगी।
: सपना वो नहीं जो नींद में आए, दिल में झूठी उम्मीद जगाए;
सपना वो है जो सोने ना दे और जीवन में कभी रोने ना दे।
: अगर कोई आपको नजरअंदाज करता है तो बुरा महसूस मत करो।
लोग अक्सर मूल्यवान चीज़ों को ही नजरअंदाज करते हैं, क्योंकि उनका मूल्य उनके पास नहीं होता।
: एक बहुत अच्छी बात जो ज़िंदगी भर याद रखिए:
आप का खुश रहना ही आप का बुरा चाहने वालो के लिए सबसे बड़ी सज़ा है।
: विद्या से विनम्रता आती है;
विनम्रता से पात्रता आती है।

Thursday, December 4, 2014

बेईमानी     की     छत     पे  बैठा    हु
वहा  से    ताजा   नजारा   देख  रहा  हु
बेईमानो  के  घर बनते    देख   रहा हु
इमानदारो   के घर उजड़ते देख रहा हु
बेईमानी के भाव    बढ़ते,खूब बिकते देख  रहा हु
ईमानदारी केभाव घटते गोदामभरते  देख रहा हु
बाबागिरी  के अलाम   कुछ     यु देख  रहा हु
की उन बेईमानो   को जेल में बैठे देख  रहा हु
रिस्तो की   डोर   कमजोर  होते देख  रहा हु
भाई भाई और बाप बेटे  में दरारे देख  रहा हु
कुछ को चरित्र के लिए मरते  देख रहा हु 
तो कुछको सूरत संवार करबाजीलुटते देख रहा हु
बुलंदीआ   छूना  तो  मुझे भी  बखूबी  आता हे
पर दुसरो को     गिराने का  हुनर   ,लोग        
  कहा से लाते   हे    ,यही देख      रहा हु
सभ्यताएवं  संस्कृति का होता नाश देख रहा हु
आधुिकता    के नाम पे                           
    लोगो    के     नंगे होते        देख    रहा हु
                    आर बी आँजणा

Sunday, November 30, 2014

क्यों  रोता हे अकेला
दो आंसू मुझे भी दे दे
मत तड़प तू अकेला
थोड़ा सा दुःख जरा ,, बयां कर दे
गाव से आया हु शहर की तरफ
थोड़ा सा काम मुझे भी दे दे
पुरखो की वो अमानत साथ लाया हु
थोड़ी सी सभ्यता ,,संस्कृति तू भी ले ले
थोड़ी सी अमानत बाँट  दे ,,
जरुरत मन्दो  को .......की
ये आरजू रहे उनकी ख़ुदा से ,,
थोड़ी सी चैन ,,,शांति ,,,,
वो........तुजे भी दे दे
             आर बी आँजणा

Wednesday, November 19, 2014

कबीर पंथ की चादर ओढ़ने वाले रामपाल जी ने शायद यह दोहा तो पढ़ा ,,सुना ही होगा

कबीर का घर सोवटे ,,    गाला कटन के पास
जो करता वो नर नहीं डरता,तो में क्यों फिरू उदास ......

आखिर हम सही हे
तो गलत तरीको  की जरुरत क्यों हे
आखिर हम सच्चे   हे
तो झूठ की जरुरत क्यों हे
अगर हम धर्म के रखक हे
तो धर्म  कमांडो  की जरुरत क्यों हे
आखिर हमें किसी से डर नहीं
तो छुपने की जरुरत क्यों हे
अगर धर्म को माया मोह नहीं
तो उन्हें पेसो की जरुरत क्यों हे
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और भी कई ऐसे सवाल हे जो रामपाल के आचरण को लेकर काफी लोगो के जहन में उमड़ रहे होंगे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


 संत रामपाल ने कबीर पंथ की चादर ओढ़कर इस तरह का आचरण किया ,,,ये कबीर पंथ का आचरण नहीं हे ,,,,

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का सटीक रामबाण

  जो सोचा नही था , वो समय आज गया । ऐसा समय आया कि लोगो को सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि उस समय क्या किया जाए । आज की लोगो की जीवनशैली की वजह से...