Thursday, February 6, 2014

"होके  खफा अब हयात से ,,,
 जाओगे आखीर कहा  ,
हर मोड़ पर तैयार बेठे हे जख्मी
वह भी ख्वाइश ना रखना एहतराम की
खफा जो आखीर हमसे हुए हो "
                      आर . बी . आँजना 
झुकाने लगे अब तो हम सर अपना ,,, मारे शर्म के,,,
देख के नाकामी नेताओ की एवं बिगड़ा स्वरुप ,देश की सियासत का ..!
अगर कोई सितम ना करे बेवजह हमपे ,,,,
जख्म तो हमारे युही भर जायेंगे ....!
                      रमेश भाई आंजना

इंसान दुनिया से जीत जाता हे ......





मगर ,,,,,




मगर ,,,,,,




मगर क्या....


मगर अपनों से हार जाता हे ,,!

                    रमेश भाई आँजना

Wednesday, February 5, 2014

अब में शिकवा किससे करू

दोस्तों आज एक ऐसे शख्स से बात हुई जो काफी दुखी था अपनी असफल जिंदगी को लेकर , काफी उम्र ढल चुकी हे ,मुलाकात में उन्होंने अपनी जिंदगी के सारे पहलु सुनाये , सारी नाकामयाबियां सुनाई और जिस तरह हर असफल आदमी कारन भी जरुर बताता हे ,, वही काम उन्होंने भी बखूबी किया ,और काफी कुछ अपने सर पे मढ़ते हुए खुद को जिम्मेदार माना ,, यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी की अपनी आत्मा कि सुनी और आत्मा कि अव्वाज को बहार निकाला , क्युकी आत्मा कभी जूठ नहीं बोलती !मित्रो उनकी सारी बाते सुनकर मेंने तो यही निस्कर्ष निकाला की हमें जो करना हे बस लग जाओ , निकल जाओ घर से , रास्ते अपने आप बनते जायेंगे , मंजिल खुद बी खुद नजर आयेगी ! कही ऐसा ना हो की फिर हमें भी इसी तरह पछताना पड़े , ऐसा नहीं होगा मित्रो !मेरी हर दुआ , हर शुभकामना मेरे मित्रो के साथ हे !
हमारी मुलाकात में उनकी कही बातो को में मेरे मित्रो के सामने चार पंक्तियो में पेश करने कि कोशिस की हे ,,,,,,


वक्त से पहले हो गई आज भोर
रह गई मेरी निंद्रा अधूरी
              अब में शिकवा किससे करू !
रह गए मेरे सपने , ढहकर मेरे दिल में
नहीं कर पाया इन्हे सच
              अब में शिकवा किससे करू !
जिंदगी रह गई बन के ,मेरी नाकामी का सबब
मुझ पर ही आ गया सारा इल्जाम
             अब में शिकवा किससे करू !
ढाल गई ये जवानी , हो गए बाल सफ़ेद
आ गया ये मंजर बुढ़ापे का
             अब में शिकवा किससे करू !
ढह गए सरे मंजर मेरी आँखों के सामने
बस सिर्फ देखते ही रह गया
            अब में शिकवा किससे करू !
सोच कर भी नहीं सोच पाया की में क्या करू
जब में ही कुछ नहीं कर पाया तो फिर
           अब में शिकवा किससे करू !
                                   आर. बी. आंजना 

आपके दिल में रहते हे

कहा रहते हो रमेश भाई ???
पूछना भी वाजिब है मित्रो यह हमारा प्यार है
आप सबके लिए मेरी कलम से निकली चार पंक्तिया पेश करता हु ,,,,

"ना फसलो के शहर में रहते हे
ना हज़ारो की भीड़ में रहते हे
मेरे मित्रो ,,,,,
हम तो आपके वो बेपनाह आशिक हे
जो सदा आपके दिल में रहते हे "
                       आर. बी. आंजना 

Sunday, February 2, 2014

बदल गए इरादे

हुए थे जब रुखसत अपने घर से ,,,
करके खुद को जब दस्ते कुदरत
घने अँधेरे में …
सन्नाटे की मर्यादा को चीरते हुए ,,
करने खुद को ख़ुदकुशी के हवाले ..
थाम ली हमारी बाह …
रोक लिया हमें तारीकियों में रहने ….
उन वाले जुगनुओ ने ,,,
पूछ ली हमारी आरजू …
जब छेड़ा हमने अपना जिक्र ,,,
तो देखा ,,,,
वो हमारे तलबगार निकले ,,,,
थोड़ा आगे बढ़े ,,,,
देखते हुए नजारा
जंगल , दरिया, अँधेरी रातो का,
देखते हुए आबादी परियो की,,,
देखा आगे चम् चमाती चांदनी थी ….
पक्की पक्की सड़के थी ,,,
सडको पर कच्ची लाशे थी….
आगे जाकर देखा डेल्ही जैसा शहर निकला ….
पीछे मुड़ के जब हमने मुर्दो से पूछा ,,,
वो हमारे जाकिर निकले ,,,,,,,
हर दोस्त का एहसान मेरे सर पे रहा ,,,
हर मुश्किल का पैगाम मेरे सर पे रहा ,,,
सो बार शुक्रिया मेरे यारो का ,,,,
ना लगा किसी गद्दारी का दाग मेरे सर पे ,,,,,
बस इसी का एक शुक्रिया मेरे रजिक का
देख के अजीब नज़ारे ,,,
बदल गए इरादे ,,,,,
फिर लेकर एक नै आरजू ,,,,,
लोटा सुबह घर को ,,,
छोड़ के शहर के महल ,,,,
बेठ के गाव के भीगे घर में ,,,,
पूछा इस टूटे दिल से ,,,,
निकली एक बुलंद आवाज़ ….
होसला मत हार मुसाफिर ,,,
तब होस आया,,,,,
तो ,,,,,,,पता चला ….
हम ही तो हमारे मददगार निकले
               आर . बी . आंजना

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का सटीक रामबाण

  जो सोचा नही था , वो समय आज गया । ऐसा समय आया कि लोगो को सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि उस समय क्या किया जाए । आज की लोगो की जीवनशैली की वजह से...