बदल गया ये मंजर ....
खिल रहा था वो ,,महकते गुलजार की तरह
दिख रहा हे अब ,,सुने शमसान की तरह
गूंजती थी यहाँ ,,धुनें
इश्वर की आरतियो एवं आराधनाओ की //
बदल गई ये धुनें,,,
लाशो की किलकारियों मे ...
क्या खेल रच मेरे रब ने ......
बिखरे हे आज यहाँ बंजर लाशो के ....
भगवन की मूर्तियों की जगह ,,,,,
बदल गया वो सिंदूर ,,,,,इंसान के खून में ....
बदल गया वो नीर गंगा का ...
इंसान के रक्त में ,,,,,,,,
आती थी खुशबु जहा,
दिया ,,बत्ती ,,एवं धुप की ....
पत्थरो के इस शमसान में ...
महक रही हे ;;;;;
लाशे आज इंसान की
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