Wednesday, May 20, 2020

ईश्वर की माया ही अलग है ।

नमस्कार दोस्तों मैं आज आपके समक्ष एक ऐसी घटना को प्रस्तुत कर रहा हूं जिससे आप सभी भलीभांति वाकिफ हैं कुछ ही दिनों पहले हमारे प्रवासी भाइयों के साथ में एक घटना हुई ,हम मानते हैं प्रवासी भाई मारवाड़ से बाहर बैठा हर बिजनेसमैन हमारे मारवाड़ की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं उनको सम्मान पूर्वक घर लाना ,उनको सम्मान पूर्वक वापस बिजनेस तक पहुंचाना यह सरकार, की प्रशासन की औऱ हम सब की एक सामूहिक जिम्मेदारी बनती है ।कुछ कारण रहे होंगे मारवाड़ी भाई वहां से निकले वहां से रवाना हुए कुछ मजबूरियां रही होगी उनकी भी कि जल्दी जल्दी घर पहुंच जाते हैं क्या पता कल को फिर क्या हो जाए और आदमी जब जल्दी बाजी में होता है जब परेशानी में होता है तो फिर वह अपने हिसाब से निर्णय भी लेता है और अपने हिसाब से वह काम भी करता है खैर इस घटना में सरकार को प्रशासन को घर वालों को दोस्तों को साथ वालों को प्रवासियों को खुद को किसी को भी दोष देना शायद उचित  नहीं होगा ।  इस स्थिति में वह कहते हैं ना कि होनी क्या होनहार जब मां के पेट में बच्चा गर्भ धारण करता है उसी समय उसकी जीवन की सम्पूर्ण रचना विधाता द्वारा रच दी जाती है । मां विधाता को इतना ही पसंद था मैं बहुत दुखी हो गया जब इस घटना के बारे में सुना बेलगाम में भी काफी प्रवासी भाइयों से बात की । बंधुओं से बात हुई तो बोला कि हां घटना सच है फिर भी मुझे लगा कि भगवान राजेश्वर और ईश्वर की कृपा से सारे बंदे बस जाएंगे । लेकिन ईश्वर की माया तो वही जानता है हमारी कोई औकात तक नही की हम कुछ ईश्वर की माया का अंदाजा तक लगा सके। मित्र घटना ऐसी हुई कि एक लड़का भोलाराम चौधरी नाम का ईश्वर को प्यारा हो गया । कुछ वीडियो सामने आए वो  उसने वीडियो कब बनाए हैं कब नहीं बनाये है । तथ्यात्मक ओर प्रमाणिक जानकारी तो मैं नहीं कह सकता लेकिन वह वीडियो जो सामने आ रहे हैं ऐसा कहा जा रहा है कि इस बच्चे ने  बेंगलुरु से रवाना होने से पहले बना करके अपने अकाउंट पर डाले थे । जो वीडियो बनाये है वो साबित करते है कि उसकी आत्मा को सब कुछ पता चल गया था कि यहां से निकलने के बाद मेरे साथ क्या होने वाला है । मेने सब वीडियो सुने ,बेहद सन्देशपूर्ण , बेहद समझदारी ओर सूझबूझ भरे , संदेशवाहक वीडियो , सुनकर बहुत दुख हुआ ।मैं इस बच्चे को किसी एक्टर से कम नहीं मानता, मैं इस बच्चे को किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं मानता, कितना प्यारा कम उम्र का लड़का लड़का होगा । झकझोर दिया इस घटना ने परिवार पर जो बीती होगी उसका अंदाजा भी हमारे बस की बात नही सकते आज हिम्मत करके इनके बड़े भाई साब गणेशाराम जी से बात हुई । हिम्मत दी , समझाया, ईश्वर की अमाया है , होनी क्या होनहार , होनी थी हो गई कोई टाल नही पाया । उन्हें ढांढस बंधाया । बड़े भाई साहब से काफी लंबी बात करके समझाया मां-बाप को हिम्मत देने की बात कही उन्हें भी अच्छा लगा । उन्होंने बताया काफी उत्साही ओर हौसले वाला कही नही अटकने वाला भाई था मेरा , बहुत ही मार्मिक ओर गहरी बात सुनकर आंखों ने जवाब दे दिया । परिवार से बात करके मेरा भी कुछ दिल हल्का हुआ ।
मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करना चाहता हूं एक कविता के माध्यम से आपको कुछ अनुभूतियां करवाना चाहता हूं कि जब इस दुनिया में परिवार का साथ देने वाला मेंबर हो  या भाई हो या छोटा हो या बड़ा हुआ जब दुनिया से चला जाता है तब का साथ भाई को  नहीं रहता तब क्या स्थितियां बनती है वह भाई किस तरीके से उनकी याद में तड़प तड़प कर रोता है

मेरे भाई साहब स्वर्गीय भभुतारामजी (2000) ओर भाई स्वर्गीय भोलाराम चौधरी को समर्पित ।

         "" मेरा भाई ""
याद ने आज फिर सताया है
 फिर वही किस्सा याद आया है
वही जगह ,वही पेड़ ,वही समय
सब तो आज वही हो आया है
बस आज भाई नहीं आया है 

वही खेत, वही खलिहान
वहीं पेड़ की छाया है
वही खेत की फसलें हैं
बस कंधे पर भाई का हाथ नहीं
सब तो आज वही हो आया है ।
बस आज भाई नहीं आया है ।।

आज गांव की पाठशाला कक्ष गया
उसी पेड़ की छाया तले पहुंच गया
वही जगह, वही कोना, वही कक्ष
वही समय, वही घड़ी, वही माहौल
सब तो आज वही हो आया है ।
बस आज भाई नहीं आया है ।।

घर के आंगन में टूटी खटाई पर
दोनों एक साथ वही मस्ती
वही नोकझोंक ,वही लड़ाई
वही रूठना और वही मनाना
आज फिर से सब कुछ वही हो आया है ।
हमेशा की तरह मनाने वाला 
 बस आज भाई नहीं आया है ।।

वही घर ,वही आंगन वही ,परिवार
वही पारिवारिक नोकझोंक
वही बढ़ती जिम्मेदारियां
वही बिन बदलने वाला रवैया
सब कुछ तो आज वही हो आया है
बस जिम्मेदारीयां लेकर
मेरा हौसला बढ़ाने वाला
आज भाई नहीं आया है ।।

बिन रुके समय बीत गया
देखते-देखते परिवार बढ़ गया
सब कुछ भूल भुलाकर हसरतें जवान हो गई
दुख दर्द भुलाकर संताने नौजवान हो गई
सब भूल गए वह किस्से
जमाने के लिए मात्र कहानियां हो गई
आज भी याद नहीं जाती मुझसे
हर पल ,हर जगह ,हर साल
बस मुझ में आप ही आप हो
जीवन की नैया में सबकुछ हो आया 
पर आज तक मेरा भाई
कभी सपने में भी नहीं आया है ।
सब कुछ तो वही होने आया है ।
बस आज फिर भाई नहीं आया है ।।

आपका अपना छोटा भाई 
लेखक -- रमेश भाई आँजणा

मित्रो मैं आप सभी इस स्तिथि में हाथजोडकर विनती करना चाहता हु की जो होना है वो होगा ही होगा लेकिन आप सभी जहां हो वही रहो , शासन प्रशासन , सरकार , समाजसेवी सभी लोग अपनी पूरी कोशिश में है कि सबकी मदद की जाए । लेकिन अपना निर्णय अपने हाथ है । 
सुरक्षित रहे ।
वाहन सम्भलकर चलाये ।
अपना ओर परिवार का पूरा पूरा ख्याल रखे । जहां हो वही अपना घर है , सुरक्षित रहिए , बुरा समय आता जरूर है लेकिन आखिर कट ही जायेगा , धैर्य के साथ थोड़े दिन खुद की रक्षा करे ।
बस जीवन है तो सब पा लेंगे ।
स्वर्गीय भाई भोलाराम की आत्मा को ईश्वर शांति प्रदान करे और इस परिवार को यह सदमा सहन करने की शक्ति दे ।
आपका अपना 
रमेश भाई आँजणा
9413885566

Saturday, May 2, 2020

"भारत के गावो का जीवन

"भारत के गावो का जीवन "


भारतवर्ष प्रधानतः गांवों का देश है। यहाँ की दो-तिहाई से अधिक जनसँख्या गांवों में रहती है।इसका एक मुख्य कारण कि उनका मुख्य निर्भरता वाला व्यवसाय खेती हे और इस  पर वो निर्भर है। भारत में लगभग छह लाख गाव हे ! जहा देश की दो तिहाई जनसंख्या निवास करती हो उस जगह का विकाश नहीं  हो  तो देश के विकाश की कल्पना तक करना एक विचार मात्र होगा  इसलिए गांवों के विकास के बिना देश का विकास किया जा सकता है, ऐसा सोचा  भी नहीं जा सकता।क्योकि गाव भारत का आइना हे यहाँ भारत की वास्तविक छवि उभरती हे ! में तो यही कहूँगा की गाव ही भारत हे , यहाँ के गाव ही ये देश हे ! लेकिन कहने के लिए बहुत कुछ पर हकीकत में कुछ थोड़ा सा काम अभी बाकि हे !गावो की जनता अभी भी झोपड़ी में निवास करती हे घास फुस की बनी  वो छप्पर, कीचड़ मिटटी के बने वो कच्चे आँगन ! अब भी वो कच्ची टूटी हुई सड़के जो हमें गावो का रास्ता दिखाती हे !हरियाली से घिरे वो गाव ,सब्जी ,फलों  एवं पेड़ पोधो की छटाएं अपनी हरियाली के नखरे बिखेरती  और अपनी खुशबु  से आने जाने वालो को सराबोर करती वो रौनक , और इन  छायादार पेड़ो की रौनक के बीच इनके निचे बैठकर गावो के लोगो की वो जुगल बंदी वो विश्राम वो प्यार वो चौपाल वो हुका परस्ती और अपने सुख दुःख की वार्तालाप , बस ये सब और कही नहीं बल्कि भारत के गावो में आज भी मौजूद हे ! गाव के बाहर  का वो कुआ जहाँ गाव की सारी  पनहारिया अपना घड़ा कमर में पकड़ के एक साथ बाते  करती हुई पानी भरने जाती हे प्रात काल और साँझ की बेला की वो रौनक केवल गाव के कुओ पर ही पाई जा सकती हे और कही नहीं ! भारत की संस्कृस्ति की शान घूँघट निकाले वो पनहारिया तीन तीन मटके अपने हाथो में पकडे ,अपने ही अंदाज में अपने समूहों में बाते करती और साथ ही साथ उनकी पायलों की वो झंकार उस जगह का माहोल ही अलग बना देती हे !यहाँ के गावो का ये माहोल और कही नहीं पाया जा सकता !ताजी प्रदुषण रहित  हवा का आनंद,खुले मैदान ,हरे भरे खेत , भरे पुरे खलिहान यहाँ का रमणीय दृश्य प्रस्तुत करते हे ! यहाँ का सात्विक एवं पोस्टिक भोजन उम्र  दराज लोगो की सेहत तक का परिचय करवाता हे !गावो का विद्यालय जिसमे कमरो का अभाव और साथ ही साथ अध्यापको का भी अभाव होता हे और गावो की निचे पेड़ की छाया में कट्टे , बोरी बिछा कर बैठने की प्रथा का आनंद डेल्ही पब्लिक स्कूल में भी नहीं मिल सकता ! बेशक शाम तक कपडे गंदे हो जाते हे ! सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय एवं प्रकृति की गोद  में निवास करते गावो के लोग अपने जीवन का एक अलग ही आनंद लेते हे ,किसानो को सुबह और शाम अपने पशुओ को खेतो में चराने ले जाते और ले आते  पशुओ के गले में बंधी उस घंटी की मधुर आवाज एक संगीतमय शाम का अहसास करवाती हे ! इन सब अद्भुत आकर्षण दृश्यों का अनुभव सिर्फ और सिर्फ भारत के गावो में ही लिया जा सकता  हे और कही नहि !
यह एक सास्वत सत्य हे कि हर एक बुरा पहलु एक अच्छाइ  लिए होता हे तो  अच्छा पहलु कोई कमजोरी भी लिये होता हे!हर अँधेरे के पीछे एक उजाले की किरण  होती हे तो उस उजाले के पीछे एक अँधेरे की की घनी छाव भी जरूर नजर आती हे ! गावो की  इन सब बातो के बावजूद कुछ सुने अनसुने ऐसे भी पहलु हे की यदि यही देश की आत्मा हे यही देश की शान हे यही देश का मान हे तो फिर यहाँ इन कई सारी समस्याओं का बोलबाला क्यों !पुलिस  स्टेशन का अभाव, पोस्ट ऑफिस का अभाव ,स्वस्थ्य सेवाओ का अभाव काफी सारी असुविधाये जो हमें एक  कठिन  जीवन का अहसास जरूर कराती हे ! साथ ही साथ अशिक्षा के कारन लोगो के उस एक डर के कारन कुछ असामाजिक तत्वों का खुले आम घूमना !  कई सारी  अच्छाइयों के साथ साथ कई सारी  समस्याएं भी हर जगह रहती हे ! जो हर सिक्के का एक पहलु होता हे इस बात से गाव भी अछूते नहीं रह सकते !
भारत का इतिहास भी एक गौरवशाली और काफी गहन हे कई पड़ावों वाला इतिहास हम कह सकते हे  एक लम्बे अरसे तक अंग्रेजी हुकूमतों के साथ साथ कई और हुकूमतों ने भी इस देश पर शासन  किया ! इस काल में उन्होंने जैसे चाहा वैसे किया ! वो उनका समय था , होना लाजमी था ! स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के गावो ने बहुत हद तक उन्नति की हे! यह स्तिथि अंग्रेजो के जाने के बाद के समय के गावो को आज के गावो से तुलना करके देखा जा सकता हे ! स्वतंत्र भारत की सरकार ने गावो की उन्नति के लिए काफी प्रयत्न किये ! लेकिन फिर भी आज से कुछ समय पहले तक की स्तिथि को देखा जाये तो कई सारी समस्याएं सर उठाये खड़ी थी अपना एक पूर्ण दबदबा बनाये खड़ी थी ! उनका कारण उसी सिक्के का दुसरा ही पहलु था ना की दूसरे सिक्के का कोई पहलु ! 

  अंग्रेजी हुकूमत के जाने के बाद स्वाधीन भारत ने अपने सिरे से देश का विकास सुरु किया और  खेती के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। 1952 में जब पहली पंचवर्षीय योजना का आरम्भ हुआ तो उसमें खेती के विकास पर सबसे अधिक ध्यान दिया गया।

खेती के विकास के साथ-साथ ग्राम-विकास कि गति भी बढ़ी। आज भारत के अधिकाँश गांवों में पक्के मकान पाये जाते हैं। लगभग सभी किसानों के पास अपने हल और बैल हैं। बहुतों के पास ट्रेक्टर आदि भी पाये जाते हैं।कुछ किसानो ने अपनी व्यवसाय से बढ़ती आय के कारन थोड़ा और आगे बढ़कर कुछ नए खेती के उपकरणों का उपयोग भी सुरु किया हे जिससे किसानों कि आय भी बढ़ी है। पहले की तुलना में आज के भारत के गावो में ग्राम-सुधार की दृष्टि से शिक्षा पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। आज अधिकाँश गांवों में प्राथमिक पाठशालाएँ हैं। जहाँ नहीं हैं, वहाँ भी पाठशाला खोलने के प्रयत्न चल रहे हैं। काफी सारी  सरकारी योजनाओ के बावजूद भी किसान की स्तिथि में ज्यादा सुधार नहीं आया हे ,, हां ये जरूर हे की सरकार की कुछ योजनाये काफी हद तक अच्छा कुछ करने में सफल हुई हे ! लेकिन किसानों की दयनीय स्थिति का एक प्रमुख कारण ऋण है। जैसा मेने पहले उजागर किया की किसानो की स्तिथि को दयनीय बनाने में अपने ही लोगो की अपने ही सिक्के के एक पहलु की ही भूमिका हे वो हे  सेठ-साहूकार  जो थोडा सा क़र्ज़ किसान को देकर उसे अपनी फसल बहुत कम दाम में बेचने को मजबूर कर देते हैं। हां सरकार ने इस तरफ अपना ध्यान आकर्षिक करके अपना काम सुरु किया हे जो काफी सफल भी हो रहा हे  इसलिए गांवों में बैंक खोले जा रहे हैं जो मामूली ब्याज पर किसानों को ऋण देते हैं। और भी इससे थोड़ा सा आगे बढ़कर सरकार ने किसानो को और गावो को आधुनिकता से जोड़कर   कई नई  योजनाओ की सुरुआत भी की हे जो एक हद तक सार्थक हो रही हे ,, पर पूर्ण रूप से नहीं !

जिसमे की  ग्रामीण व्यक्तियों को विभिन्न व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हथकरघा और हस्त-शिल्प की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। विचार यह है कि छोटे उद्योगों व कुटीर उद्योगों की स्थापना से किसानों को लाभ हो।

पहले गांवों में यातायात के साधन बहुत कम थे। गांव से पक्की सड़क 15-20 किलोमीटर दूर तक हुआ करती थी। कहीं-कहीं रेल पकड़ने के लिए ग्रामीणों को 50-60 किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ता था। अब धीरे-धीरे यातायात के साधनो का विकास किया जा रहा है।

फिर भी ग्राम-सुधार की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। अभी भी अधिकाँश किसान निरक्षर हैं। गांवों में उद्योग धंधों का विकास अधिक नहीं हो सका है। ग्राम-पंचायतों और न्याय-पंचायतों को धीरे-धीरे अधिक अधिकार प्रदान किये जा रहे हैं। इसलिए यह सोंचना भूल होगी कि जो कुछ किया जा चुका है, वह बहुत है। वास्तव में इस दिशा में जितना कुछ किया जाये, कम है।

हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि गांवों के विकास पर ही देश का विकास निर्भर है। यहाँ तक कि बड़े उद्योगों का माल भी तभी बिकेगा जब किसान के पास पैसा होगा। थोड़ी सी सफाई या कुछ सुविधाएँ प्रदान कर देने मात्र से गांवों का उद्धार नहीं हो सकेगा। गांवों की समस्याओं पर पूरा-पूरा ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
 मै तहे दिल से अपना आभार प्रकट करता हु मेरे अजीज मित्र और  पत्रकार श्री रुद राम चौधरी  का की उनके के इस नेक कार्य एवं आग्रह पर मुझे ये लेख लिखने  का सौभाग्य प्राप्त हुआ  ! क्युकी सरकार बहुत सी योजनाये और कई सारी नीतिया पास करती हे पर भारत के उस अंतिम छोर तक वो नहीं पहुंच पति क्योकि  शिक्षा की कमी के कारण  ,,इसलिए ग्रामीण राजस्थान के लिए शुरू ये पहल इस दिशा में भी एक अहम् और मिल का पथ्थर साबित होगी  ,! गावो के किसान भाइयो को , उम्र दराज  माता पिताओ को ,, और अशिक्षित माता बहनो को अपने अभिकरो का और अपने लिए निकाली गई सरकारी योजनाओ का पता चलेगा और वो इसका फायदा उठा पाएंगे !

 अंतत में इतना ही कह पाउँगा की आज तक भारत के गावो का जो विकाश हुआ हे वो केवल ऊट  के मुह में जीरा ही कहा जा सकता यह! अभी बहुत कुछ करना होगा और देश के कर्णधारो को ये समझना होगा की भारत को विकसित देश बनाना हे तो सुरुआत गावो से ही करनी होगी ! क्योकि देश को खाना देने वाले दान दाता  अन्न दाता गावो में ही बसते  हे ! यहाँ देश की आत्मा निवास करती हे , यही देश का ह्रदय हे !
जय हिन्द जय भारत  ! जय जवान जय किसान !
                                                                        लेखक :- रमेश भाई आँजणा
                                                                       
                                                                       
                                                                       
                                                                       
                                                                       
                                                               
                                                                     







मेरी बेटी कविता द्वारा बनाई बाबा साहेब की तस्वीर ।

कोरोना से डरना नही -आत्म विश्वास से लड़ना है ।

*ओशो* गजब का *ज्ञान* दे गये, *कोरोना* जैसी *जगत बिमारी* के लिए

*70* के *दशक* में *हैजा* भी *महामारी* के रूप में पूरे *विश्व* में फैला था, तब *अमेरिका* में किसी ने *ओशो रजनीश जी* से प्रश्न किया
-"इस *महामारी* से कैसे  बचे ?"

*ओशो* ने विस्तार से जो समझाया वो आज *कोरोना* के सम्बंध में भी बिल्कुल *प्रासंगिक* है।

                       *ओशो*

"यह *प्रश्न* ही आप *गलत* पूछ रहे हैं,

*प्रश्न* ऐसा होना चाहिए था कि *महामारी* के कारण मेरे मन में *मरने का जो डर बैठ गया है* उसके सम्बन्ध में कुछ कहिए!

इस *डर* से कैसे बचा जाए...?

क्योंकि *वायरस* से *बचना* तो बहुत ही *आसान* है,

लेकिन जो *डर* आपके और *दुनिया* के *अधिकतर लोगों* के *भीतर* बैठ गया है, उससे *बचना* बहुत ही *मुश्किल* है।

अब इस *महामारी* से कम लोग, इसके *डर* के कारण लोग ज्यादा *मरेंगे*.......।

*’डर’* से ज्यादा खतरनाक इस *दुनिया* में कोई भी *वायरस* नहीं है।

इस *डर* को समझिये, 
अन्यथा *मौत* से पहले ही आप एक *जिंदा* लाश बन जाएँगे।

यह जो *भयावह माहौल* आप अभी देख रहे हैं, इसका *वायरस* आदि से कोई *लेना* *देना* नहीं है।

यह एक *सामूहिक पागलपन* है, जो एक *अन्तराल* के बाद हमेशा घटता रहता है, कारण *बदलते* रहते हैं, कभी *सरकारों की प्रतिस्पर्धा*, कभी *कच्चे तेल की कीमतें*, कभी *दो देशों की लड़ाई*, तो कभी *जैविक हथियारों की टेस्टिंग*!!

इस तरह का *सामूहिक* *पागलपन* समय-समय पर *प्रगट* होता रहता है। *व्यक्तिगत पागलपन* की तरह *कौमगत*, *राज्यगत*, *देशगत* और *वैश्विक* *पागलपन* भी होता है।

इस में *बहुत* से लोग या तो हमेशा के लिए *विक्षिप्त* हो जाते हैं या फिर *मर* जाते हैं ।

ऐसा पहले भी *हजारों* बार हुआ है, और आगे भी होता रहेगा और आप देखेंगे कि आने वाले बरसों में युद्ध *तोपों* से नहीं बल्कि *जैविक हथियारों* से लड़ें जाएंगे।

🌹मैं फिर कहता हूं हर समस्या *मूर्ख* के लिए *डर* होती है, जबकि *ज्ञानी* के लिए *अवसर*!!

इस *महामारी* में आप *घर* बैठिए, *पुस्तकें पढ़िए*, शरीर को कष्ट दीजिए और *व्यायाम* कीजिये, *फिल्में* देखिये, *योग*  कीजिये और एक माह में *15* किलो वजन घटाइए, चेहरे पर बच्चों जैसी ताजगी लाइये
अपने *शौक़* पूरे कीजिए।

मुझे अगर *15* दिन घर  बैठने को कहा जाए तो में इन *15* दिनों में *30* पुस्तकें पढूंगा और नहीं तो एक *बुक* लिख डालिये, इस *महामन्दी* में पैसा *इन्वेस्ट* कीजिये, ये अवसर है जो *बीस तीस* साल में एक बार आता है *पैसा* बनाने की सोचिए....क्युं बीमारी की बात करके वक्त बर्बाद करते हैं...

ये *’भय और भीड़’* का मनोविज्ञान सब के समझ नहीं आता है।

*’डर’* में रस लेना बंद कीजिए...

आमतौर पर हर आदमी *डर* में थोड़ा बहुत रस लेता है, अगर *डरने* में मजा नहीं आता तो लोग *भूतहा* फिल्म देखने क्यों जाते?

☘ यह सिर्फ़ एक *सामूहिक पागलपन* है जो *अखबारों* और *TV* के माध्यम से *भीड़* को बेचा जा रहा है...

लेकिन *सामूहिक पागलपन* के *क्षण* में आपकी *मालकियत छिन* सकती है...आप *महामारी* से *डरते* हैं तो आप भी *भीड़* का ही हिस्सा है

*ओशो* कहते है...TV पर खबरे सुनना या *अखबार* पढ़ना बंद करें

ऐसा कोई भी *विडियो* या *न्यूज़* मत देखिये जिससे आपके भीतर *डर* पैदा हो...

*महामारी* के बारे में बात करना *बंद* कर दीजिए, 

*डर* भी एक तरह का *आत्म-सम्मोहन* ही है। 

एक ही तरह के *विचार* को बार-बार *घोकने* से *शरीर* के भीतर *रासायनिक* बदलाव  होने लगता है और यह *रासायनिक* बदलाव कभी कभी इतना *जहरीला* हो सकता है कि आपकी *जान* भी ले ले;

*महामारी* के अलावा भी बहुत कुछ *दुनिया* में हो रहा है, उन पर *ध्यान* दीजिए;

*ध्यान-साधना* से *साधक* के चारों तरफ  एक *प्रोटेक्टिव Aura* बन जाता है, जो *बाहर* की *नकारात्मक उर्जा* को उसके भीतर *प्रवेश* नहीं करने देता है, 
अभी पूरी *दुनिया की उर्जा* *नाकारात्मक*  हो चुकी  है.......

ऐसे में आप कभी भी इस *ब्लैक-होल* में  गिर सकते हैं....ध्यान की *नाव* में बैठ कर हीं आप इस *झंझावात* से बच सकते हैं।

*शास्त्रों* का *अध्ययन* कीजिए, 
*साधू-संगत* कीजिए, और *साधना* कीजिए, *विद्वानों* से सीखें

*आहार* का भी *विशेष* ध्यान रखिए, *स्वच्छ* *जल* पीए,

*अंतिम बात:*
*धीरज* रखिए... *जल्द*  ही सब कुछ *बदल* जाएगा.......

जब  तक *मौत* आ ही न जाए, तब तक उससे *डरने* की कोई ज़रूरत नहीं है और जो *अपरिहार्य* है उससे *डरने* का कोई *अर्थ* भी नहीं  है, 

*डर* एक  प्रकार की *मूढ़ता* है, अगर किसी *महामारी* से अभी नहीं भी मरे तो भी एक न एक दिन मरना ही होगा, और वो एक दिन कोई भी  दिन हो सकता है, इसलिए *विद्वानों* की तरह *जीयें*, *भीड़* की तरह  नहीं!!"

                    -:  *ओशो*  :-

Saturday, December 17, 2016

वक्त के आने पर हर कोई   झुक जाता हे 
किनारे पर आकर भी तैराक डूब  जाता हे 
हर किसी को दुनिया का प्यार नसीब नही होता 
लाखो की भीड़ में भी इंसान अकेला खो जाता हे 
कल भी अकेला था आज भी अकेला हु 
घर के आँगन में 
हजारो आते हे,फिर हर इन्सां  बेजुबां 

चला जाता हे   
आर. बी. आँजणा 




आपका आज किया हुआ प्रयास  ही आपके आने वाले कल को सुधार सकता हे 
सफलता का सबसे बड़ा रहस्य हे 
एक शुरुआत 

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का सटीक रामबाण

  जो सोचा नही था , वो समय आज गया । ऐसा समय आया कि लोगो को सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि उस समय क्या किया जाए । आज की लोगो की जीवनशैली की वजह से...