वो कागज की कस्ती
वो गांव की बस्ती
वो हंसी ,,, वो खेल
वो मस्ती ,,वो नादानी
क्या वो बचपन था
छोड़ के सब ,,,,,
निकले थे शहर हो
सपने सजाने
आज घर ही ,,,,
एक सपना बन गया
छीन लो मेरी धन दौलत
तैयार हु में .....चाहे
छीन लो मेरी जवानी
मुझे मेरा बचपन लोटा दो
वो गांव की बस्ती
वो हंसी ,,, वो खेल
वो मस्ती ,,वो नादानी
क्या वो बचपन था
छोड़ के सब ,,,,,
निकले थे शहर हो
सपने सजाने
आज घर ही ,,,,
एक सपना बन गया
छीन लो मेरी धन दौलत
तैयार हु में .....चाहे
छीन लो मेरी जवानी
मुझे मेरा बचपन लोटा दो