आज
रानीवाडा व जाखडी में हुई अप्रिय घटना से मुझे दु:ख हैं ! मैं ईश्वर से
प्रार्थना करता हूँ कि ईश्वर उनके परिवार को दु:ख सहन करने की शक्ति प्रदान
करें व दुर्घटना के शिकार भाईयों व बहनों की आत्मा को शान्ति प्रदान करें !
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Monday, August 18, 2014
Saturday, August 16, 2014
होस्लेवान मुफ़लिस
वक्त तेरे पास भी नहीं हे
वक्त मेरे पास भी नहीं हे
नया तू भी इस शहर में हे
नया में भी इस शहर में हु
ना कोई तेरा अपना इस शहर में हे
ना कोई मेरा बेगाना इस शहर में हे
खुमार तुजे भी हे इस मुफलिसी का
खुमार मुझे भी हे इस गरीबी का
भरी हुजूम में सो रहा हे तू भी
भरी हुजूम में सो रहा हु में भी
डर तुझे भी होगा इन काली शबो का
डर मुझे भी हे इन काली शबो का
ना तेरे सर पे सायबा हे
ना मेरे सर पे सायबा हे
कड़कड़ाती सर्द रातो में ,,,,
सिकुड़ गई हे देह तेरी भी
कड़कड़ाती सर्द रातो में ...
सिकुड़ गई हे देह मेरी भी
तेरी अस्मत की चिन्ता तुझे भी होगी
मेरी अस्मत की चिन्ता मुझे भी हे
कुछ ख्वाब तेरे भी होंगे
कुछ ख्वाब मेरे भी हे
किसी का सौदाई तू भी होगा
किसी का सौदाई में भी हु
ऐ मेरे काली रातो के मुफ़लिस दोस्त
कुछ पल और हे ,,,सहर होने को आई हे
मुद्दुआ तो आखिर दोनों की एक ही हे
जिंदगी तुझे भी जिनि हे
जिंदगी मुझे भी जिनि हे
चल उठा मेंहनत के हथियार
तोड़ डाले इस मुफलिसी की दीवार को
बता दे ज़माने को कि.......
कुछ तुम भी हो तो
कुछ हम भी हे
कुछ ज़माना भी हे
तो कुछ हम भी हे
"आर . बी . आँजना"
वक्त मेरे पास भी नहीं हे
नया तू भी इस शहर में हे
नया में भी इस शहर में हु
ना कोई तेरा अपना इस शहर में हे
ना कोई मेरा बेगाना इस शहर में हे
खुमार तुजे भी हे इस मुफलिसी का
खुमार मुझे भी हे इस गरीबी का
भरी हुजूम में सो रहा हे तू भी
भरी हुजूम में सो रहा हु में भी
डर तुझे भी होगा इन काली शबो का
डर मुझे भी हे इन काली शबो का
ना तेरे सर पे सायबा हे
ना मेरे सर पे सायबा हे
कड़कड़ाती सर्द रातो में ,,,,
सिकुड़ गई हे देह तेरी भी
कड़कड़ाती सर्द रातो में ...
सिकुड़ गई हे देह मेरी भी
तेरी अस्मत की चिन्ता तुझे भी होगी
मेरी अस्मत की चिन्ता मुझे भी हे
कुछ ख्वाब तेरे भी होंगे
कुछ ख्वाब मेरे भी हे
किसी का सौदाई तू भी होगा
किसी का सौदाई में भी हु
ऐ मेरे काली रातो के मुफ़लिस दोस्त
कुछ पल और हे ,,,सहर होने को आई हे
मुद्दुआ तो आखिर दोनों की एक ही हे
जिंदगी तुझे भी जिनि हे
जिंदगी मुझे भी जिनि हे
चल उठा मेंहनत के हथियार
तोड़ डाले इस मुफलिसी की दीवार को
बता दे ज़माने को कि.......
कुछ तुम भी हो तो
कुछ हम भी हे
कुछ ज़माना भी हे
तो कुछ हम भी हे
"आर . बी . आँजना"
मेरा वजूद
ना में जीवन के लिए ,,ना आसमा के लिए
मेरा वजूद सिर्फ इंसान के लिए
ना में गरीब के लिए ,,,ना अमीर के लिए
मेरा वजूद सिर्फ इंसान के लिए
'
ना में हिन्दू के लिए ,,,ना मुस्लिम के लिए
मेरा वजूद सिर्फ इंसान के लिए
ना में किसी एक के लिए ,,,ना सब के लिए
मेरा वजूद सिर्फ इंसान के लिए
ना अपनों के लिए ,,,ना परायो के लिए
मेरा वजूद सिर्फ इंसान के लिए
चाहे कर्म के लिए हो या चाहे मर्म के लिए
मेरा वजूद सिर्फ इंसान के लिए
"आर बी आँजना"
मेरा वजूद सिर्फ इंसान के लिए
ना में गरीब के लिए ,,,ना अमीर के लिए
मेरा वजूद सिर्फ इंसान के लिए
'
ना में हिन्दू के लिए ,,,ना मुस्लिम के लिए
मेरा वजूद सिर्फ इंसान के लिए
ना में किसी एक के लिए ,,,ना सब के लिए
मेरा वजूद सिर्फ इंसान के लिए
ना अपनों के लिए ,,,ना परायो के लिए
मेरा वजूद सिर्फ इंसान के लिए
चाहे कर्म के लिए हो या चाहे मर्म के लिए
मेरा वजूद सिर्फ इंसान के लिए
"आर बी आँजना"
Tuesday, August 12, 2014
मित्रो आज दिन में NDTV पर एक डिबेट देख रहा था ! कभी कभी लगता हे की हमारे देश का मीडिया भी कुछ मामले ज्यादा ही सेंसिटिव बना देता हे !ना कभी संघ देश बाँटने की बात करता ,,ना कोई और संघटन,, पर हां मीडिया के लिए जरूर वो बात सुर्खिया बन जाती हे ! कभी कभी कुछ बाते मीडिया को संभलकर आगे लानी चाहिए ताकि लोगो को कोई गलत सन्देश ना जये !ऐसा मुझे लगता हे !,उसने बोला ये हिन्दू ,,,उसने बोला वो मुसलमान ! भारत उसका हे वो हमारा हे ,,,पता नहीं कोण किसका हे ,,,किसने बांटा हे ,,,कोण किसको किसकी जागीर समझता हे ! पर सुर्खिया गरम जरूर हो जाती हे ! पता नहीं चलता की इंसान की परिभाषा क्या हे ,,,,,बस यही सिर्फ की वह हिन्दू ,,,यह मुसलमान ,,,वो सिख ,,ये ईसाई ? नहीं समझ आता मित्रो .....
चार लाइन लिखी जो आपसे साझा करता हु ..........
कोई कहता हे यह मुस्किल हे
कोई कहता हे यह नामुमकिन हे
जरा घर से निकल के देखो
रास्ता साफ़ नजर आएगा
जरा आगे बढ़ के देखो
मंजिल अपनी ही नजर आएगी
कोई कहता हे यह हिन्दू हे
कोई कहता हे वह मुसलमान हे
कोई कहता हे यह सिख हे
कोई कहता हे वह ईसाई हे
ज़रा धर्म के चश्मे उतार कर देखो
सब इंसान नजर आएंगे
"आर . बी . आँजना"
चार लाइन लिखी जो आपसे साझा करता हु ..........
कोई कहता हे यह मुस्किल हे
कोई कहता हे यह नामुमकिन हे
जरा घर से निकल के देखो
रास्ता साफ़ नजर आएगा
जरा आगे बढ़ के देखो
मंजिल अपनी ही नजर आएगी
कोई कहता हे यह हिन्दू हे
कोई कहता हे वह मुसलमान हे
कोई कहता हे यह सिख हे
कोई कहता हे वह ईसाई हे
ज़रा धर्म के चश्मे उतार कर देखो
सब इंसान नजर आएंगे
"आर . बी . आँजना"
Monday, August 11, 2014
बदलाव का सबब
परेशान हे दुनिया बाजारे सियासत में
आखिर इस दर्द की दवा क्या हे !
बुझी हुई शमा फिर से जलाने में लगा हे
आखिर इस इंसान का कर्म क्या हे'!
इंसान इंसान को काटने में लगा हे
भूल गया यह की इसका धर्म क्या हे !
हैवानियत के खेल को अपना धंधा बना रखा हे
आखिर इस मर्द की मंशा क्या हे !
बदल गई यह कायनात एकदम से
आखिर इस बदलाव का सबब क्या हे !
"आर. बी . आँजना"
आखिर इस दर्द की दवा क्या हे !
बुझी हुई शमा फिर से जलाने में लगा हे
आखिर इस इंसान का कर्म क्या हे'!
इंसान इंसान को काटने में लगा हे
भूल गया यह की इसका धर्म क्या हे !
हैवानियत के खेल को अपना धंधा बना रखा हे
आखिर इस मर्द की मंशा क्या हे !
बदल गई यह कायनात एकदम से
आखिर इस बदलाव का सबब क्या हे !
"आर. बी . आँजना"
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