बेठे रहे हम भीड़ वाले रास्ते पर ,,,,,
यह सोच के ि क,,,,,
सफलता शायद यही से गुजरती है !
देखते रहे हम चेहरे ,,,,,
चलने वाले हर राही के ,,,,,,,,
यह सोच कर
ि क
,,,,,,
शहर की सारी भीड़ तो,,,,
आखिर यही से गुजरती है !
बनाती रही जनता तमाशा हमारा,,,,,
यह सोच कर
ि क
,,,,
हम पर क्या गुजरती है !
होश जब आया हमें ,,,,
देखा हम अकेले बेठे थे ,,,,,
पहुँच चुके थे सब अपनी मंजील को,,,,,,,
खोके अपना सब कुछ ,,,,,
जिंदगी के अंतिम मुकाम पर बेठे ,,,,,,
बस,,,,,,,,,,,,,,
हम ही जानते है
ि क,,,,,,
अब हम पर क्या गुजरती है !
अब हम पर क्या गुजरती है !
आर . बी . आँजना